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________________ प्रस्तावना [३] बृहदारण्यक और सत्यशासन-परीक्षा बहदारण्यकका निम्न वाक्य सत्यशासन-परीक्षामें उधत किया गया है"आत्मा वा रे दृष्टव्यः श्रोतव्योऽनुमन्तव्यो निदिध्यासितव्यः।"' [बृहदा० २।४।५] परमब्रह्माद्वैतशासन-परीक्षाके प्रकरणमें मोक्ष और उसके उपायोंका वर्णन करते हुए श्रवण, मनन और ध्यानका विवेचन किया गया है, वहींपर उपर्युक्त वचनको 'तथैव श्रुनिः' कहकर प्रमाण रूपसे उद्धृत किया गया है [४] अमृतबिन्दु उपनिषद् और सत्यशासन-परीक्षा सत्यशासन-परीक्षाके परमब्रह्माद्वैत प्रकरणमें पूर्वपक्षके रूपमें ब्रह्माद्वैतका विवेचन करते हुए अमृतबिन्दु उपनिषद्का निम्न वाक्य 'तदुक्तम्' कहकर प्रमाण रूपसे उद्धृत किया गया है "एक एव तु भूतात्मा भूते भूते व्यवस्थितः । एकधा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत् ॥"" [ अमृतबि० उप० पृ० १२, पृ० १५ ] [५] महाभारत और सत्यशासन-परीक्षा महाभारत भारतीय साहित्यका अतिविश्रुत शास्त्र है। ज्ञान-विज्ञानके इस विशालकाय ग्रन्थसे विद्यानन्दिने सत्यशासन-परीक्षामें एक पद्य उद्धृत किया है "तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः नासौ मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥" [ महाभारत ] चार्वाकशासनके पूर्वपक्षमें आगम, तर्क और धर्म आदिके अभावको स्थापना करते हुए चार्वाकोंको ओरसे प्रमाणके रूप में उपर्युक्त पद्य 'तदुक्तम्' कहकर उद्धृत किया गया है। [६] भगवद्गीता और सत्यशासन-परीक्षा महाभारतका विशिष्ट अंश भगवद्गीता एक सारभूत ग्रन्थ है। वैदिक मन्तव्योंका प्रतिनिधित्व करनेपर भी गीता अपने-आपमें एक स्वतन्त्र दर्शन प्रस्तुत करती है। विद्यानन्दिने गीतासे निम्न पद्य उद्धृत किया है "ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥” विद्गी० १५/१] यह पद्य अद्वैतकी सिद्धिके लिए सत्यशासन-परीक्षाके परमब्रह्माद्वैत प्रकरणमें उदधत किया गया है। [७] ब्रह्मसूत्र और सत्यशासन-परीक्षा बादरायणका ब्रह्मसूत्र अद्वैतदर्शनका महान ग्रन्थ है। इसमें अद्वैतका सांगोपांग विवेचन किया गया है। विद्यानन्दिने सत्यशासन-परीक्षामें परमब्रह्माद्वैतके पूर्वपक्षका प्रतिपादन करनेके प्रसंगमें ब्रह्मसूत्रका निम्न सूत्र बादरायणके नामके साथ प्रमाण रूपमें उद्धृत किया है। "तथैवोक्तं भगवता बादरायणेनजन्माद्यस्य यतः [ ब्रह्मसू० १।१।२] १. सत्य०.परमब्रह्म०६११ २. सत्य. परमब्रह्म०६६ ३. सत्य० चार्वाक०६२ ४. सत्य० परमब्रह्म० ६२३ ५. सत्य० परमब्रह्म० ६ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001567
Book TitleSatyashasana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages164
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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