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प्रस्तावना
[ख ] बौद्धशासन-परीक्षामें ज्ञानका अविसंवादित्व समर्थन करते हुए 'तदुक्तम्' कहकर सिद्धिविनिश्चयका निम्न पद्य उदधृत किया है
“विषदर्शनवत्सर्वमज्ञस्याकल्पनात्मकम् । दर्शनं न प्रमाणं स्यादविसंवादहानितः ॥''
[सिद्धिवि० १।२४] इस पद्यको पं० महेन्द्रकुमारजीने टीकासे निम्नरूपमें संकलित किया है
"विषदर्शनवदज्ञस्य दर्शनमविकल्पकम् ।
न स्यात्प्रमाणं सर्वमविसंवादहानितः।।२ यद्यपि अर्थको दष्टिसे दोनों पद्योंमें कोई विशेष अन्तर नहीं है तो भी निश्चय ही विद्यानन्दिको अकलंकका मूल पद्य प्राप्त रहा होगा। [७] यशस्तिलक और सत्यशासन-परीक्षा
यशस्तिलक सोमदेवसूरि ( ९५९ ई. ) का महान् संस्कृत ग्रन्थ है। इसमें यशोधरको कथाके माध्यमसे कला, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, धर्म, न्याय, दर्शन आदि अनेक विषयोंका महत्त्वपूर्ण विवेचन किया गया है।
सोमदेवने यद्यपि न तो विद्यानन्दिका ही उल्लेख किया है और न सत्यशासन-परीक्षाका हो; किन्तु सोमदेवने चार्वाकमतके खण्डनमें जो तर्क दिये हैं वे स्पष्ट रूपसे सत्यशासन-परीक्षामें विद्यमान हैं। तुलना कीजिए[क] यशस्तिलक
"सत्यं न धर्मः क्रियते यदि स्याद्गर्भावसानान्तर एव जीवः । न चैवम्जातिस्मराणामथ रक्षसां च दृष्टः परं किं न समस्ति लोके ।
[ उत्त० ९२] सत्यशासन-परीक्षा
"मृतानां केचिद् रक्षोयक्षादिकुलेषु स्वयमुत्पन्नत्वेन कथयतां दर्शनात्, केषांचिद् भवस्मृतेरुपलम्भाच्च।"
[चार्वाक० ६ १८] [ख] यशस्तिलक"भूतात्मकं चित्तमिदं च मिथ्या स्वरूपभेदात्पवनावनीव"
[ उत्त० ९३ ] सत्यशासन-परीक्षा
"भूतचैतन्ययोः .... अभेदे शरीराकारपरिणतावनि-वन-पवनसख-पवनामप्येकत्वप्रसङ्गात् ।"
[चार्वा०६ १७ ] [ग] यशस्तिलकमें निम्न दो पद्य नीलपटके नामसे उधत किये गये हैं, जो कि सत्यशासन-परीक्षामें भी पाये जाते हैं।
भी पाये जाग ? यशस्तिलको
१. सत्य० बौद्ध० ३ १५ २. सिद्धिवि० १२४ ३. विशेष विवरण-यश० उत्त० पृ० २७२, सत्य०, चार्वा० १७
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