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अंबुवीचिनिवकहाणयं नमिऊण निवं मंतिं च ते वि साहेति एरिसं तस्स । निय नयरनिग्गया अम्ह सामिणो संति इह एंता ॥२०३५।। पुरओ पट्टविया पुण अम्हे तुम्हं सरूवकहणत्थं । अह चितइ सो मंती विम्हयभरिओ नियमणम्मि ।।२०३६।। देव गिहमज्झठवियं देवयपडिमं जहा जणो नाउं । सयमागंतुं पणमइ देइ नियत्थं ससत्तीए ।।२०३७।। तो विलसइ तं अत्थं पडिमा पडिचारओ जहिच्छाए । मन्निज्जइ य जणणं पडिमात्तिं कुणेमाणो ।।२०३८।। पत्थियमपत्थियं पि हु भोयण-वत्थाइयं तहा लहइ । नायरजणपासाओ देवगिहं रक्खमाणो सो ॥२०३९।। जइ पडिमं फेडेउं तट्ठाणे ठाइ कह वि सयमेव । तो तस्स पत्तियं पि हु को वि न पाडेइ दिदृस्स ।।२०४०।। कणमुट्टि पि न ढोयइ करेइ खिसं विसेसओ लोओ । अम्ह वि सो च्चिय नाओ निभंतं एस संजाओ।।२०४१।। जे कुव्वंता भत्ति पुव्वं अत्थं नियं पयच्छंता । ते अम्ह संपयं नियपहुम्मि अवहीरिए संते ।।२०४२।। जाया परमविवक्खा पारद्धा भीसणं रणं काउं । अम्हेहि समं संपइ पहभत्ताणं पुणो अम्हं ॥२०४३।। पुव्वं व सिणेहपरा अणानिद्देसकारिणो जाया । ता पेच्छ कहं माणो मणुपाणमणम्मि विप्फरइ ।।२०४४।। सामिस्स पभावणं लोए माहप्पमुवलहंता वि । मन्नंति अप्पणो च्चिय गणाण तं विलसियं मूढा ॥२०४५।। इय चितिऊण दूए डलियाणं महीवईणं च । आवासम्मि विसज्जइ सेसं पि जणा जहाजोग्गं ।।२०४६।। अस्थाणाओ उट्ठाविऊण निवई पि नेइ गिह मज्झे । जाइ सयंपि सगेहे रन्नो कज्जाइं चितेइ ॥२०४७।। पत्ता तइयम्मि दिणे मंडलिया पंच तिन्नि नरनाहा। कय मंगलिया रन्नो मंतिस्पय जोग्गयावेक्खं ।।२०४८।। कइवयदिणपज्जते कय सम्माणा निवाय मंडलिया। सचिवेण सदेसेसु विसज्जिया हरिसभरियंगा ।।२०४९।।
॥ अंबवीचिराजकथानकं समा तं ।। ता भो मंति ! गुणेसु वि संतेसु निरक्षणीयमिह पुन्नं । पुरिसस्स विसेसेणं ठविज्जमाणस्स सामिपए ।।२०५०।। तो मंतिणा पभणियं जइ एवं देव ! तो निमित्तण्णू । दिव्वण्ण साउणिया हककारेउं भणिज्जति ।।२०५१।। जह पंचन्ह वि मज्झे सुयाण रज्जम्मि जोग्गया जस्स । नियनाणेणं नाउं मज्झ पुरो तं निवेएह ।।२०५२।। तो रन्ना पडिभणियं मण्याणं रागदसियमणाणं । कस्स वि कम्मि वि पुरिसे संजायइ पक्खवायमई ? ।।२०५३।। तो तेसि वयणेसुं सक्रूिज्जइ नेय पच्चओ काउं । नाणविसंवाओ वि हु मइमोह। तेसु संभवइ ।।२०५४।। तो आह निवं मंती पुन्नपरिन्नाणमन्नह कहं तु । देवस्स संभविस्सइ विसए रज्जारि हसुथस्स ।।२०५५।। जंपड़ तओ नरिंदो होही कुलदेवयापसाएण । जं अन्नया वि साहइ भविस्स अत्थं इमा मज्झ ।।२०५६।। निव्वडइ तं तह च्चिय जं देवा दिव्वनाणिणो होति । मण्याण अवेक्खं न य कुणंति देवत्त भावेण ।।२०५७।। अह चितइ नियचित्ते सचिवो एवं अहो इमो राया। बुद्धीए अइनिउणो वीससइ न कस्सइ नरस्स ।।२०५८।। इय चितिऊण मन्नइ रन्नो वयणं तहत्ति सो मंती। जंपइय' कया देवो पुच्छिस्सइ देवयं एयं ।।२०५९।। राया भणइ पभाए सोहणदियह तओ निसासमए । सुइभूओ पूएउं देवयपडिमं पुरो तीसे ।।२०६०।। सयणं करिस्समह सा सुमिणम्मि कहिस्सए फुडं मज्झ। कयमंतानिच्छओ अह राया मंति विसज्जेइ ।।२९६१।। मंती गिहम्मि गंतुं एगंते लिहइ भुज्जपत्तम्मि । रायकयकज्जनिच्छयमह तं जत्तेण संवरिउं ।।२०६२।। तंतूहिं नियंतेउं अंगीए गुज्झयम्मि निक्खिवइ । तं घोडुलए मुंचइ आगंतुं अप्पणा बाहिं ॥२०६३।। उचियासणम्मि ठाउं अभितारयं तओ नरं एक्कं । हक्कारेउं जंपइ मज्झाओ अंगियं मज्झ ॥२०६४।। आणेहि सो वि आणइ तो तीसे गुज्झयाउ कड्ढेउं । तं भुज्जतस्स करे समप्पिउं भणइ इय मंती ।।२०६५।।
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