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सिरिमुनिसुव्वयजिणिंदचरियं तो सो पभायसमए कीरो वाहेण पुच्छिओ एवं । कह भो कस्स समीवे नेमि तुम संपयं भद्द! ॥१७४०।। कीरेण तओ भणिओ वाहो जह नेहि मं निवपुरम्मि । जत्थ समिद्धो लोओ निवसइ कोऊहलपरो य ।।१७४१।। नेऊण तत्थ चउहट्टयम्मि दंसह मं पुरो धणीणं । जो मग्गइ तस्स अहं कहियव्वो पंचहि सएहि ॥१७४२॥ तह चेव य तेण कय न कोइ जा देइ तेत्तियं मोल्लं । कीरेण तओ भणिओ वाहो जह मुयह सव्वे वि ।।१७४३॥ एए नायरलोए मह गहणे नत्थि जोग्गया एसि। गहियस्स वि मज्झ गुणा तेसु न अग्घति किविणेसु ।।१७४४।। तो रायउले नेउं निवस्स मं देहि निवसुयस्सऽहवा । इयजपतो निसुओ सुओ इमो केणइ नरेण ।।१७४५।। निवउत्तसेवएणं गंतूणं तेण स पहुणो कहियं । तो तेण झत्ति सो च्चिय पुरिसो संपेसिओ तत्थ ।।१७४६।। हक्कारेउं वाहं नीहरिओ सोवि सीहदारम्मि । तं पेक्खइ नियमत्थयनिहित्तसुयपंजरं तत्तो ॥१७४७।। हक्कारिऊण तं नेइ झत्ति नियसामिणो समीवम्मि। सो निवसुएण पुटो मुल्लं कीरस्स परिकहइ ॥१७४८।। पंचसए दम्माणं न उत्तरं देइ जाव सो किं पि। तो तेण रायपुत्तो कीरेण सयं पि संलत्तो ॥१७४९।। मा कुणह किंपि चित्ते वियप्पमिह गिन्हएत्ति एणावि । मुल्लेण तुम मं रायउत्त! तुह हं करिस्सामि ।।१७५०॥ अइगरुयं उवयारं समयम्मि समागयम्मि तो एवं । सुणिऊण रायकुमरो तं गिन्हइ तेण मुल्लेण ॥१७५१।। तह चेव पंजरगयं वाहं सम्माणिउं विसज्जेइ । तो पभणइ तं कीरं पढमव्वयकुमर ! किं पि फुडं ॥१७५२।। कीरो पभणइ कुमरं छुहिओहं देहि भोयणं कि पि। दाडिमफलाइयं देइ तस्स कुमरो वि आहारं ॥१७५३।। अह सो कय पारणओ कीरो समओचियाइं बहुयाइं। कव्वाइं पढइ-पाययभासाए 'रइयाई ॥१७५४॥ अह पुच्छइ तं कुमरो पहिट्ठहियओ कहेहि भो ! कीर । वाहगिहसंठिएणं कह पढियं एत्तियं तुमए ।।१७५५।। सो भणइ एग चित्तो कुमार ! निसुणेहि जेण साहेमि । राया को विहु पोढं पुत्तं रज्जे ठविऊण ॥१७५६।। पव्वइओ तेण सम तद्देवी थेवदियहगब्भेण । संजुत्ता पव्वइया गब्भो रन्ना न विनाओ ॥१७५७।। तीए जाणंतीए न य कहिओ विरहकायरमणाए। अह ताइं दो वि कुलवइ पासे पडिवन्नदिक्खाइं॥१७५८।। चिट्ठति कुणंताई नियकिरियं केत्तिएहिं दियहेहिं । वुढिगयम्मि गब्भे देवीए वुढ्डतावसिया ॥१७५९।। कुलवइपुरओ साहइ तेण वि सो लज्जिहि त्ति रायरिसी। न य किं चि उवालद्धो ताई पसुत्ताई मोत्तूण ।।१७६०।। दो विसयं सह तावसजणेण सेसेण अन्न ठाणम्मि । संकमिओ रयणीए जायम्मि तओ पभायम्मि ।।१७६१॥ रायरिसीगयनिहो दट्ठ णं तावसासमं सुन्नं । जा तत्थ भमइ पेच्छइ निय' भज्ज तावसि ताव ।।१७६२।। लक्खिज्जमाणगब्भं ता नाउं गमणकारणं तेण । सेसाण तावसाणं बहुयं देवी उवालद्धा ।।१७६३।। सम्भावम्मि वि कहिए तीए तं भणइ ताव सो राया। अगहियवया कहती जइ तुममेयं मम तया वि ।। ता होतं अइ लट्ठ एवं न चडतयं कलंकमिणं । एगागित्तं पि तहा न होतयं अम्ह इह रन्नो ॥१७६५।। अह रोहउँ पयत्ता सा देवी तावसी तओ तेण । रायरिसिणा किवाए पसन्नवयणेहिं संउविया ॥१७६६।। निय उडयसन्निहाणे नीया भयवेवमाणसव्वंगी । पुनदियहेसु पुत्तं तओ पसूया पवररूवं ॥१७६७।। अहं तं पवढ्डमाणं सो पाढइ रायतावसो पयओ। लक्खणछंदालंकारनीइसत्थाइयं सव्वं ।।१७६८।। तमहं तत्थ वसंतो पच्चासन्नो सुणेमि नीसेसं । एएण पयारेणं कुमार ! एवं मए पढियं ॥१७६९।। सो निवतावसतणओ समिहाइकए कयाइ अइदूरे। पगओ नियासमाओ पत्तो मत्तेण वणकरिणा ॥१७७०।। वावाइओ य दिट्ठो मए वि वियरणगएण सो तत्थ । कहिओ य तावसस्स वि सतावसीओ गओ सो वि ।१७७१।।
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