SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिवकेऊचरियं जावे सो तावेको समागओ तत्थ दूर-देसाओ। सागारो तरुण-नरो पोत्थिय-हत्थो तरु-तलम्मि ॥३१३॥ अइ उद्ध लिय-जंघो तं दद्रु वारओ वि चितइ । नूणेस कि पि जाणइ पुच्छामि तओ स-जणणीए ॥३१४।। मंद-सरूवं किंचि वि इय चितिय तस्स नमइ नियसीसं । जोडेइ पाणि-जुयलं पुच्छइ विणएण तं पुरिसं ॥३१५।। केत्तियदूराओ तुम इहागओ भद्द ! सो तओ आह । वीसहिय-जोयण-सयाहि पुटव-देसे सुलसगामा ॥३१६॥ अह वारुएण दिन्नं तरु-मूल-सिलाए आसणं तस्स । नियउत्तरीयमिह तं उवविससु इमं भणेऊण ॥३१७।। तविणय-रंजिओ सो उवविट्ठो तत्थ वारुएण पुणो । उवविसिउं सो पुट्ठो किमत्थि एयाए पोत्थीए? ।।३१।। तेण तओ पुच्छाए उवरि परिभावियं जहा एत्थ । मज्झ किलेसम्मि कए अत्थि फलं कि पि कि नेय ?॥३१९।। नाऊण फलं तत्तो पयंपियं एत्थ अस्थि केवलिया। पुण वारुएण पुट्ठो सो नज्जइ कि पि एयाए ? ॥३२०।। सो भणइ निच्छएणं नज्जइ जं पुच्छए परो किं पि। लाहालाह-सुहासुह-जीविय-मरणाइं जयमजयं ॥३२१।। तो भणइ वा रुओ तं पढम चिय कहह ताव नियनामं । सो कहइ तस्स पुरओ मह नामं देवगुत्तो त्ति ॥३२२।। पुट्ठो पुणो वि सो वारुएण जह एरथ केण कज्जेण। अहभागओ त्ति पकहसु काऊण महापसायं मे ॥३२३॥ तो कहइ देवगुत्तो तुह माया मोहिणि त्ति नामेण । रोगग्घत्था चिट्ठइ तस्स कए ओसहं गहिउं ।।३२४।। एत्थ तुमं संपत्तो तं गहियमसुक्क-रिंगिणी-मूलं । नियखल्लहरे खित्तं संचिट्ठइ संपयं तुमए ।।३२५।। इय वारुओ सुणे हियए संजायपच्चओ हिट्ठो। पुच्छइ पुण जणणीए नीरोगत्तं कया होही ? ॥३२६॥ तेण भणियं जया तं इहागओ नियगिहाउ तुह जणणी। आसि तया पडुकरणा इन्हि जाओ करणघाओ।।३२७।। कळं व ठिया चिट्ठइ निच्चेट्ठा वच्च ता तुम इन्हि । गेहम्मि देहिनस्सं रिंगिणि-मूलस्स जणणीए ॥३२८।। तेण हविस्सइ एसा सज्जा सहस त्ति वारुएण तओ। अब्भत्थिऊण नीओ नियगेहे देवगुत्तो वि ॥३२९।। गंतूण अप्पणा पुण गिहमज्झे जाव पेक्खए जणणि । ताव इमा तह चिट्ठइ जह कहिया देवगुत्तेण ।।३३०॥ तो वारुएण नस्सं दाउं सज्जीकया निया जणणी। अह न्हाण-भोयणाई कारविउं देवगुत्तस्स ।३३१।। देइ वरवत्थ-जुयलं तोसोवइ हंसरोम-तूलीए । तं गंतुं कहइ सयं सव्वं मइसागरस्स तयं ॥३३२।। तं सोउं जाय-कुऊहलेण मइसागरेण पट्टविओ। सो झत्ति वारुओ नियगिहम्मि तस्साहवणहेउं ॥३३३।। अह वारुएण गंतुं नियगेहे सो सयंपि पडिबुद्धो। आमंतिऊण नीओ मइसागर-सन्निहाणम्मि ॥३३४॥ तेण वि कय पडिवत्ती पुट्ठो सो देवगुत्त-केवलिओ। किं भुवणपालकुमरो करिस्सए घडिय-दुग-मज्झे ॥३३५।। सो भणइ तस्स इन्हि सेज्जाए गयस्स वेयणा सीसे । उप्पज्जिस्सइ मंतं सुमरंतस्स य समं गमिही ॥३३६।। पच्छा तब्भज्जाए जोणी-सूलं भविस्सए तिव्वं । तप्पेसिय दासीए वयणेणं तत्थ सो गमिही ॥३३७।। ओसारिऊण परियणमेगंते तस्स कन्न-कुहरम्मि । पीडं नियं कहिस्सइ फेडिस्सइ सो तमुंजेउं ॥३३८।। कयभोयणस्स पच्छा सिलियावसरम्मि दूरदेसिल्लो। भट्टो समागमिस्सइ तुरियकई चंडपालो त्ति ॥३३९।। इय कहिए मंतिसुओ तंबोलं दाविऊण केवलियं । तं भणइ जहा गंतुं बाहिं तुब्भे पडिक्खेह ।।३४०॥ जाव इह भोयणमहं करेमि नेमित्तिओ तओ बाहिं । गंतूण निसीयइ मंति-नंदणो वारुयं तत्तो ॥३४१।। कुमर-गिहे पेसेउं सिलियावसरस्स जाणणट्ठाए । भुजेइ सयं सो पुण गंतूणं वारुओ तत्थ ॥३४२॥ विणियत्तो भुत्तुट्टियसचिवं गरुहस्स साहए एवं। जह भुवणपालकुमरो भोत्तूणं उट्ठिओ इन्हि ॥३४३॥ चंकमणं कुणमाणो चिट्ठइ मइसागरो तओ झत्ति। कुमर-निवासाभिमुहो संचलियो वरहयारूढो॥३४४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001564
Book TitleMunisuvratasvamicarita
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy