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________________ सिरिमुणिसुव्वयजिणिंदचरियं एत्थंतरम्मि जाओ अत्थंगमणस्स भाणुणो समओ । जुवरण्णो अणुनाया तओ गया सा नियनिवासं ॥१५३॥ जुबरन्नो पुत्तेण विजयधम्मेणं इमा पणच्चती। अवसरगएण दिट्ठा तो जाओ तस्स अणुराओ।१५४॥ तीसे उरि गणियाधूयाए मयणरेहनामाए। तो पेसइ नियपुरिसं समप्पिउं मुद्दियारयणं ॥१५॥ सो जाइ तीए पासे सीहदुवारम्मि निक्खमंतीए। कहइ जयधम्मवयणं अप्पइ तह मुद्दियं हत्थे ॥१५६॥ सा भणइ भए गहणं चिट्ठइ मइसागरस्स संगहियं । ता अज्ज तुम्ह न खणो कल्ले जं भणसि तं काहं ।।१५७।। तो सो नियत्तिऊणं जयधम्मकुमारसन्निहाणम्मि । गंतूण कहइ तीए जं भणियं तं समग्गं पि ॥१५८।। वम्मह,परव्वसो सो पुणो वि पेसेइ सिक्खवेऊणं । तं नियपुरिसं तीसे पासम्मि भणेइ सो गंतुं ।।१५९।। जयधम्मो तुह देही दुगुणं भाडि तओ तयं मुंच। मइसागरस्स गहणं वालेऊणं समप्पेह ॥१६०॥ तो भणइ चित्तलेहा एवं न हु संगयं हवइ अज्ज । बीए दियहम्मि पुणो जयधम्मो कि पि जं भणिही ॥१६१॥ तं पि करिस्सइ एसा आयत्ता तस्स चेव जेण इमा। एत्थंतरम्मि पत्तो मइसागरसंतिओ पुरिसो ॥१६२।। तंबोल-कुसुममाई गहिऊण करम्मि चित्तलेहाए। अप्पइ सा वि समप्पइ नियदासीए समीवम्मि ॥१६३॥ जयधम्म-कुमर-पुरिसो तेण वि तत्थागएण जपतो। गणियाहिं समं निसुओ तो पुच्छइ सो वितं पुरिसं ॥१६४॥ तो गणियाहि कहियं जहट्ठियं सव्वमेव तस्स पुरो। तो मइसागर-पुरिसो जयधम्म-नरं इमं भणइ ।।१६। जयधम्मकुमारो वि हु पुत्तो सिरिविजयधम्म-जुवरन्नो । जइ एरिसं करिस्सइ नीइ-विरुद्धं तया अन्नो॥१६६।। को वारिस्सइ लोयं अनीइ-मग्गम्मि संपयट्टं तं । इयरस्स वि सिक्खगरा तुम्हे च्चिय सामिणो जेण ॥१६७।। गंतूण तेण कहियं पुरओ जयधम्म-नाम-कुमरस्स । सव्वं जहट्ठियं तं सरूवमेसो वि मयण-वसो ॥१६८॥ गिह-पत्ताणं तासिं गणियाण गिहम्मि जाइ सयमेव । जयधम्मनाम-कुमरो गंतुं सेज्जाए उवविसइ ।।१६९।। मइसागर-पुरिसेणं वारुयनामेण सह विणिक्खंता । गणिया वि मयणरेहा पच्छिम-दारेण पच्छन्ना ।।१७०॥ जा सो करेइ सारं गणियाए तत्थ मयणरेहाए। ता तस्स पुरो कहियं जणणिए उ चित्तलेहाए ॥१७१।। जह सा आगयमेत्ता गिहम्मि मइसागरस्स पुरिसेहिं । नीया तस्स समीवे ता तुब्भे वयह आवासं ॥१७२।। अज्ज पसायं काउं तो पच्छा तुम्ह चेव आयत्ता । कल्लदिणाओ पभिई मह धूया मयणरेहा सा ॥१७३॥ मह धूया पुन्नवई जं तुब्भे कुणह एत्तियपसायं । जइ ता तुमं पि भत्ता पाविज्जसि ता किमन्नेण? ॥१७४।। जइ हत्थिणी विधेणू लब्भइ तो को वि छगलियं नेय ? । नियमंदिरम्मि धारइ मा रूसह अज्ज ता तुब्भे ।।१७५।। इय चित्तलेह-गणिया भणियं सव्वं सुजुत्ति-जुत्तं पि । जयधम्मकुमर-कन्नाण वाहिरेणेव वोलीणं ॥१७६॥ मयणाउरा मणुस्सा सुहोवएसं गणिति विस-सरिसं । मन्नेइ लिंब-कडुयं पित्त-जरी सक्करं पि नरो ।।१७७।। विसम-सर-बाण-धोरणि-ताडिय-हियएण गय-विवेएण । कज्ज-परिणाममणवेक्खिऊण जयधम्म-कुमरेण॥१७८॥ पट्ठीए पट्टविया नियपुरिसा सिक्खमेरिसं दाउं । तुन्भेहि मयणरेहा मइसागरपाससुत्ता वि ॥१७९।। कड्ढेऊण हढेण वि आणेयव्वा न को वि संदेहो। इह अढे कायव्वो तत्थ गएहि मणं पि मणे ।१८०॥ तो ते आउह-हत्था पहाविया कुमर-पेसिया पुरिसा। बहवे अणुमग्गेणं गणियाए मयणरेहाए ॥१८१।। मइसागरो वि एत्तो पासाओ विजयधम्म-जुवरन्नो। नियमंदिरम्मि पत्तो तम्मि खणे मयणरेहा वि ।।१८२।। तत्थेव य संपत्ता वारुय नामस्स बाहुसंलग्गा । मइसागरस्स कन्ने होऊणं वारुओ कहइ ॥१८३॥ तं सव्वं वुत्तंतं जयधम्मकुमार-संतियं झत्ति । मइसागरेण भणियं साहुकयं जं तए एसा ॥१८४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001564
Book TitleMunisuvratasvamicarita
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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