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________________ सिरिमुनिसुब्वयजिणिदचरियं तो ते नणंदियाए रहपुरिसा पणिया जहा भो भो । मह भाउ जायमेयं पडिक्खावह अग्गओ जंति ।।२३२६।। तो नियगामकुडुंबियध्या सा परिचिय त्ति काऊण । गहिउँ कलाइयाए धरिया एक्कण पुरिसेण ॥२३२७।। पत्ता नणंदिया वि हु तत्थ तओ पुच्छिया एसा। कहियं तीए रूसणय कारणं किं पि ताण पुरो ॥२३२८।। पुरि सेहि तओ भणिया सुवासिणी सोहिणि त्ति नामेण। जइ तुह नो पडिहासइ तो मा वच्चिहसि सासुघरए।२३२९। परमिह पडिक्खखणमवि अणुपम्वा एइ जाव तो तीए । सद्धिं रहम्मि चडिया वच्चिज्जा निथपिउघरम्मि।२३३०। अत्थंगओ दिणिदो संपइ संजायमंधयारंपि । एगागिणी वयंती तो पडिहिसि कत्थइ अणत्थे ॥२३३१।। तो सोहिणीए भणियं अणूपम्वा कत्थ संपयं पगया । तेहिं वि तीसे कहियं सरीरचिताए अत्थि गया ।।२३३२।। एत्तो खणंतरेणं बालपसाओ समुट्ठिउं जाव । निज्झायइ तो पेवखइ पविसंते गाममज्झम्मि २३३३।। सोहडपमुहे पुरिसे अह सो गंतूण रामसीहस्स । तं साहइ अह सो वि हु संवहिऊणं तओ चलइ ।।२३३४।। चितइ य जहा एयं अइलट्ठमणुट्टियं निवनरहि । जं किर अणूपम्वाए पासाओ ते अवक्कंता ।।२३३५।। साहताणं अम्हं नियकज्जं संपयं न हु मणंपि । नाणं संपज्जिस्सइ नरवइणो एत्थ विसम्मि ।।२३३६।। बालपसाएण समं समनिओ पंचवीसहि जणेहिं । गच्छेइ रामसीहो पुरओ जा ताव तम्मि खणे ।।२३३७।। संचरइ न को वि पहे तिमिरावुरिए समीववत्ती वि । दोसइ ननदिट्ठो वि हु नज्जइ जइ परिचिओ वि चिरं तं चिय बालपसायं पुरओ पसइ रामसीहो तो । सुद्धिनिमित्तं सो वि हु पहपासगओ निएऊण ।।२३३९।। पहमज्झट्ठियं रहवसहमणुयसमुदायमेत्तमव्वत्तं । सद्देण निच्छिऊणं कहइ तओ रामसीहस्स ।।२३४०।। सो वि तओ ते सव्वमेलेउं एगओ भणइ भिच्चे । जह पहमज्झट्टियरहपुरिसे लउडेहि ताडेउं ।।२३४१।। पंच वि पाडेऊणं मोसं गहिऊण रहगयं सव्वं । धनउरगाममग्गे पहमुत्तरिउ तओ तुब्भे ।।२३४२।। दो दो जणामिलेउं भिन्ना भिन्ना पुणो नियत्तेउं । हरिसउरपुरपहेणं वच्चेज्जा जाव वडगामं ।।२३४३।। पत्तो जोयणमेगं ववहाणे होइ तस्स गामस्स । देसियकुडीए गंतुं मिलियब्वं तत्थ सव्वेहि ।।२३४४।। इय रामसीहवयणं तह त्ति पडिवज्जिऊण ते सव्वे । आगंतुं पह मज्झे वेगेण कुणंति तह चेव ॥२३४५।। सयमेवरामसीहो अणूपम्वा मारणेक्क कचित्तो। भयवसपलायमाणं सनणंदं सोहिणि तत्तो ॥२३४६।। अंतरमवियाणतो हणिऊणं तिक्खखग्गडंडण । निहणं नेइ खणेणं अदिस्समाणो उ इयरेहि ।।२३४७।। पुवुत्तपगारेणं पलाइउं ते वि देसियकुडीए । गंतूणं वडगामे मिलिया सव्वे वि एगत्थ ।।२३४८।। रयणीए पढमजामे चित्ते सुत्ता य तत्थ दो पहरे। पच्छिमजामे दुग-तिग-चउक्क-विदेण नोहरिउं ।।२३४९।। मग्गम्मि पुणो मिलिया वच्चंति पुरो कएण मोणेण । जायम्मि पभायम्मि उ भणिया ते रामसीहेण ।।२३५०।। जं जस्स करे चडियं मोसं तस्सव तं समग्गं पि । न परोप्परं पि कस्स वि कहियव्वं हंत तुब्भेहि ॥२३५१।। जइ पुण कहवि कहिस्सह सुणंतकहयं तयाण तो दोन्हं । मोसं अहं गहेउं कुमरस्स समप्पइस्सामि ।।२३५२।। दिह्र पि न केणइ पुच्छियव्व मह पुच्छए तथा सो वि । मोसं गहिऊण मए समप्पियव्वो कुमारस्स ।।२३५३।। तस्स य इय भणियव्वे अयमभिपाओ य रामसीहस्स । जंतेसि नियरहसेणं पुच्छंतकहतएक्को वि ।।२३५४।। आयन्नइ तह बहुयं लद्धं केणा वि होइ तो बीओ। मच्छरगहिओ जंपइ तस्स विवक्खस्स पुरओ वि ।।२३५५।। एएण पयारेणं गुज्झं सव्वं पि पयडयं होइ । एवं सिक्खविऊणं ते सव्वे सो नियय सहाए ॥२३५६।। पत्तो कमेण पासे कुमरस्स कहेइ सव्व वुत्तंतं । कुमरो वि कहइ सव्वं तं पुरओ मइ निहाणस्स ।।२३५७।। तयणंतरं पि पत्ता सोहडपमुहा वि साहिउं रन्नो। जह वत्तं नियकज्जे लग्गा एत्तो य पहमज्झे ।।२३५८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001564
Book TitleMunisuvratasvamicarita
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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