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________________ २ कुंतसीहरायकहाणयं जह भणिय सरूवेणं वच्चइ मग्गम्मि रामसीहो वि । चउवीसाए भिच्चेहिं संजुओ सत्थहत्थेहिं ।।२२९३।। अह मग्गम्मि वहंती अणुपम्बा वासरम्मि अट्ठमए । संझासमए पत्ता धन्नउरग्गामसीमाए ॥२२९४।। पच्चासन्ना तत्थ य दोण्हं गामाण अंतरं गरुयं । पच्छिमगामो नियडो पुरओ दूरम्मि धन्नउरं ।।२२९५।। एत्थंतरम्मि सोहडपमुहेहिं रायआयरक्खेहि । भणिया अणूपम्वाए पाइक्का भो पडिक्खेह ।।२२९६।। जं अत्थि सउणभंती संजाया एत्थ थेविया का वि । एत्तो नियत्तिउं तो पच्छिमगामे कुणह वासं ।।२२९७।। भिच्चेहि सूरपालस्स जंपियं एत्तियम्मि दूरम्मि । समुवेताणं कत्थइ सउणभंती न संजाया ।।२२९८ ।। एत्थागयाण जाओ कुओ वि पक्खाओ एस अवसउणो । नियगामस्स पवेसे पच्चासन्ने समणुपत्ते ।।२२९९।। वच्चह पुरओ एत्तिय वेलाए माणिओ उ अवसउणो। तो सोहडेण भणियं तुब्भे सव्वे वि वच्चेह ।।२३००। अम्हे पुण एत्तो च्चिय नियत्तिउं पच्छिमम्मि गामम्मि । वसिउं पभायसमए हरिसउरपुरे गमिस्सामो॥२३०१।। अह ते अणूपम्वाए भणिया तुब्भे इओ पएसाओ । मा विणियत्तह गामे मह आगच्छह सह मए वि ।।२३०२।। तो तत्थ पडिक्खह कइ वि वासरे जावएइ मह ताओ । पच्छा सम्माणेउं विसज्जिही सो तओ तुब्भे ।।२३०३।। तो सोहडेण भणियं लज्जामो संपयं महाभागे । दंसंता नियवयणं अम्हे तुह जणणि जणयाण ।२३०४।। तं तेत्तियं भणित्ता तम्मि दिणे ताण अग्गओ अम्हे । गहिऊण तुम चलिया तेसि वयणाण मज्झम्मि ।।२३०५।। एक्कंपि नेय सच्चं जायं तो कह न लज्जिमो इण्हि । ता सव्वहा वि न तए एत्थडे किं पि भणियव्वं ।।२३०६।। पुणरवि अणूपम्वाए ते भणिया जह कहं स पहुणो वि । तुब्भे न कुणह वयणं तु हि विजेण मे कहियं ।।२३०७।। हरिसउरपुरे तइया इय अम्हे नरबरण आइट्ठा। जं नियगामे नेउं कुसलेण अणुपम्वं मुयह ।।२३०८।। तो सोहडेण भणियं केत्तियदूरम्मि चिट्ठए गामो। तुज्झ इमो पाविज्जइ जो हत्थेणं इहत्थेहि ।।२३०९।। तो तत्थ तुमं भद्दे दट्ठव्वा जारिसी किर विमुक्का । जंजह कि पि भणह इन्हि तो तुह सवहो निय पिउस्स।।२३१०॥ इय भणिऊण नियत्ता चत्तारि वि पच्छिमस्स गामस्स । सम्मुहमग्गेलग्गा निवपुरिसा सोहडप्पमुहा ।।२३११।। सउणाइवइयरं ते जेत्तियवेलं ठिया पयंपंता। तम्मि पएसे उठभा अन्नोन्नमणूपम्वाईया ।।२३१२।। तेत्तिय वेलं सो बिहु बालपसाओ ठिओ पलोयंतो। दूरपएसे उड्ढो ववएस के पि काऊण ॥२३१३।। पच्छाउ रामसीहो आगंतुं तत्थ तस्स तो मिलिओ। निय पाइक्केहि समं बालपसाएण सो भणिओ ॥२३१४।। पच्छाहुत्तो होउं तुम पडिक्खेहि सह सहाएहि । परओ वा आरवो अणूपम्वा जाव संचलइ ।।२३१५।। सो जाव रामसीहो तव्वयणेणं परम्मुहो जाइ । ता ते सोहडपमुहा बालपसाएण चउरो वि ।।२३१६।। आगच्छंता दिट्ठा सम्मुहमेव अप्पणो तओ तेण । गंतूण रामसीहो भणिओ जह दक्खिणपहेण ।।२३१७।। गंतूणं एगतडे अदिस्समाणा हवेह खणमेगं । वोलिति जाव एए चउरो वि हु सोहडप्पमुहा ।।२३१८।। निवझेऊण इमे अणूपम्वाए समोवओ कहवि। एंता दोसंति जमारओमहा केणई विहिणा ।।२३१९।। तह चेव रामसोहो तव्वयणेणं तिरोहिओ होइ । बालपसाओ पडिओ पावरिऊणं पहाडम्मि ॥२३२०॥ पच्छिमगामाउ इओ सुवासिणी का वि ससुरभवणाओ। रुसिऊणं नीहरिया धनउरे जाइ पिउगहे ।।२३२१।। तीसे वि हु पट्ठीए नणंदिया वयइ तं नियत्तेउं । ताओ दो वि जणीओ बालपसाएण नो दिट्ठा ।।२३२२।। निव्वट्टिएसु सोहङपमुहेसु अणूपम्वा वि संचलिया । पुरओ गामाभिमुही ता जाव पुरो वहे पत्ता ।।२३२३।। तत्थ रहं धारेउ सरीरचिंतानिमित्तमुत्तरिउं । उब्भवहेणं गंतुं वलणम्मि ठिया सकम्मयरी ।।२३२४॥ एत्तो सुवासिणीए नणंदिया पट्टिलग्गिया दिट्ठा । तो सा सिग्धं चलिया पहम्मि पत्ता रहसमीवे ॥२३२५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001564
Book TitleMunisuvratasvamicarita
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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