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श्रावकाचार-संग्रह पात्र-कुपात्र भेद विहु ए, कुपात्र कहुं हवे चिह्न तो। समकित विना जे व्रत धरे ए, क्रिया पाले चल मन्न तो ॥८६ यतीश्वरा वक वेष लेई ए, परीषह सहे त्रण काल तो। तीव्र तप संतपि घणो ए, कष्ट करे विशाल तो ॥८७ तप व्रत-सहित मुनि ए, पोषे जे मिथ्यात्व तो। अथवा श्रावक मिथ्यात्व-पोषि ए, ते कुपात्र साक्षात तो ॥८८ दृष्टि व्रत जैन गण नहीं ए, आरंभ करे षटकर्म तो। मिथ्यात्वी मूढमती ए, संग-सहित गहाश्रम तो।।८९ देव-गुरु साधर्मी तणी ए, निन्दा करे गुण हीन तो। जिनशासन थी वेगला ए, ते अपात्र कहीए दीन तो॥९० कुपात्र-दान-तणे फले ए, कुभोगभूभि कुनर जन्म तो। छन्नु अन्तर द्वीप माहे ए, अल्प पामी कुशर्म तो ॥९१ म्लेच्छ राजा नीच नर ए, जे पामें बहु ऋद्धि तो। हस्ती घोड़ा बैल महिषी ए, ते कुपात्र पुन विधि तो ॥९२ अपात्र दान निष्फल गमी ए, जिम ऊसर भूमि बीज तो। पाथर-नाव-सम सही ए, ते बोले पर निज तो ॥९३ अपात्र दान दीघा वि ण ए. डु डु नाख्युं कूप मध्य तो। अनेक जन्म दुःख देई ए, पापाचारि ते बुद्धि तो ।।९४ पात्र-कुपात्र सम लेखवि ए, ते भोला अजाण तो।
अमृत विष, रत्न काच ए, तुम्ब नाव पाषाण तो ॥९५ एक कूप नर सिंचीए ए, सेल डीली बध तुर तो । धतूरे-विष ऊपजे ए, सेलरो मधुर तो ॥९६
स्वाति नक्षत्र मेह वरसि ए, मोती पड़े सीप विशाल तो। ते जल सर्प मुखें पड़े ए, विष थाइ हलाहल तो ॥९७ त्रिधा सत्पात्र दान ए, त्रिधा होइ भोगभुमि तो।। दशधा कल्प तरु सुख ए, देव शिव अनुक्रमें तो ॥९८ दान लही क्रिया जेहदी करे ए, दाता लहे तेहमा भाग तो। कुंलबी जिम करषण करे ए, राजा ले जिम भाग तो ॥९९ सत्पात्र क्रिया शुभ करे ए, अपात्र कुत्सित आचार तो। दान बलें जेहवं कर्म करे ए, तेहq उ फल दातार तो ॥१०० गौ हेम गज वाजि तिल ए, मही दासी नारी गेह तो। रथ आदें कुदान कहां ए, ए दश भेदे पाप-हेत तो ॥१०१ क्रोध मान माया लोभ.ए, राग-द्वेष मदकार तो। पापारम्भकारी कह्यां ए, दुःख सहे दातार तो ॥१०२ मूढ साला मिथ्यामती ए, थाप्यां दश कुदान तो। मेघ रथ भूपें दोधा ए, वार्या सुमति प्रधान तो ॥१०२
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