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पदम-कृत श्रावकाचार
दया बिना तप जप नहीं ए, दया विण नहीं घर्म ध्यान तो । दया विण शम संजम नहीं ए, दया सर्व प्रधान तो ॥ ६८ इम जाणिय दया दीजिए ए, कीजे पर उपकार तो ।
गुण सगला दयादान ए, घणुं सुं कहीए वारो-वार तो ६९ सयल भूघर माँहि मेरु ए, देव माँहे जिन देव तो । रत्न माँहि चिन्तामणी ए, तिम दान माँही दया एव तो ॥७० पात्र आहार दान फल ए भोग भूमितणा सुक्ख तो । सुर नर वर पदवी लही ए, अनुक्रमे धर्मं मोक्ष तो ॥७१ योग्य औषध दानफल ए, निरोग होइ शरीर तो । कान्ति कला लावण्य गुण ए, सबल सरूपी धीर तो ॥७२ ज्ञानदान तणों फल ए, मति श्रुत अवधि बोध तो ।
मनः पर्यय केवल गुण ए, कोविद कला कवि सुद्धि हो ॥७३ गढ़ गोपुर धवल गृह ए, त्रि-सप्त खणा आवास तो । देव विमान असुर रोह ए, मठ दानें पुण्य राशि तो ॥७४ कोड़ि पूरव पल्यतणा ए, सागर जे वर आयु तो । उत्तम काय सबल पणुं ए, लहे ते दया पसाय तो ॥७५ गृहां धरमइ दानन बड़ी ए, व्रत सुधे न वि होइ तो । निज शक्ते प्रगट करिए, दान देयो सहु कोइ तो ॥७६ दानें लक्ष्मी संपजे ए, दानें जस गुण होइ तो । ख्याति पूजा महिमा घणु ं ए, दान तोले नहीं कोई तो ॥७७ इहि लोके जस विस्तरे ए, पंचाश्चर्य करे देव तो । दातृ-पात्र विधि लहो ए, परलोक शिव संक्षेप तो ॥७८ दान गृहां बन संपजे ए, जेह वो पंक्षी माल तो । आठ पोहर पावकरी ए, दुर्गति लहे ते बाल तो ॥७९ दान पुण्ये लक्ष्मी वघे ए, निष्कासित कूप नीर तो । दुष्टाती वाघे जिम ए, तिम दाने धन धीर तो ॥८० व्यसन चोर हरे नहीं ए, दाने खुटे नहि धन्न तो । जिम सर उगन मूकीड ए, नीर रहे अखूट तो॥८१ घने सहु संकट टले ए, विष भी अमृत सम थाइ तो । शत्रु मित्र समो थई ए, दाने राज्य पसाइ तो ॥८२ अल्प धन हू पात्र -दानें ए, पुण्य पामें विस्तार तो । अल्प वड़ बीज जिम ए, तरु पामें बहु विस्तार तो ॥८३ सम्यग्दृष्टी पात्र दान ए, सुर नर पायी सौख्य तो । चक्रवर्ती तीर्थंकर पद ए, पामें अविचल मोक्ष तो ॥८४ दान पात्र दान विधि ए, इण कही संक्षेप तो । अवर कुपात्र मेद कहुँ ए, जिम जाणों गुण हेव तो ॥८५
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