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पदम कृत श्रावकाचार
व्रत पाले पुष्य उपजे ए, जस महिमा गुण होइ तो ।
सुर नर वर सुख पामीइ ए, अनुक्रमें शिव सुख जोइ तो ।। ३२ तीजो शिक्षाव्रत तणो ए, नाम अतिथि संविभाग तो । आहार औषध अभय ज्ञान ए, दीजे चतुविध त्याग तो ||३३ तिथि वार पर्व मांही ए, निमित्त उच्छव नहि राग तो । काय स्थिति काजें अन्न लीये ए, ते अतिथि पात्र करूँ भाग तो ॥३४ आमंत्रण निमित्त करो ए, आहार काजे आवे जेह तो । अतिथि पात्र ते हुइ नहीं ए, अभ्यागत जाणों सहु तेह तो ॥ ३५ त्रिधा पात्रे भेद सुणो ए, विधि जणांवली भेद तो । दान तणां भेद कहूं ए, जिम को जिनदेव तो ॥३६ उत्कृष्ट मध्यम जधन्य पात्र ए, मुनिवर पात्र उत्कृष्ट तो । अट्ठावीस मूल गुण धारी ए, रत्नत्रय विशिष्ट तो ॥३७ परिषह सहें तिहँ कालतणा ए, धर्मदश लक्षण सहित तो । सहस्त्र अष्टादश शीलधर ए, परिग्रह चौवीस रहित तो ॥३८ उत्तम अष्ट ध्यान धरी ए, तप द्वादश गुणवंत तो । सोल भावना भावक ए, तेर क्रियाव्रत संत तो ॥ ३९ तप जप संजम आचरे ए, निज-पर करितु उपकार तो । ख्याति पूजा वांछे नहीं ए, भवोदधि तरंग तार तो ॥४० रागद्वेष सर्व विगलाए, तृण-रत्न समभाग तो । ऊँच-नीच समगेह ए, श्रीमन्त समधन त्याग तो ॥४१ ममता मोह थी विगला ए, गुण चौरासी लक्ष तो । ध्यान अध्ययन सदा करिए, उत्तम पात्र मुनि दक्ष तो ॥४२ जती थये जे धन ग्रहे ए, द्रव्य आपे दातार तो । जतीव्रत भंग पापी ए. ते जाइ नरक अवतार तो ॥४३ तंत्र मंत्र तंत्र करे ए, कामण मोहण वशीकार तो । ज्योतिष वैद्यक कुविद्या करे ए, तेहने पाप अपार तो ॥४४ श्रावक मध्यम पात्र कह्या ए, जे घरे प्रतिमा इग्यार तो । समकित अणुव्रत घरे ए, ब्रह्मचर्यं गुणधार तो ॥ २५ व्रत विना दर्शन धरे ए, भक्ति करे जिन देव तो । तत्त्व श्रद्धा धर्म रुचि ए, जघन्य जाणो संक्षेप तो ॥४६ सप्त गुण दातारतणा ए, श्रद्धा शक्ति अलुब्ध तो । भक्ति ज्ञान दया क्षमा ए, गृहमधी गुण शुद्ध तो ॥४७ श्रद्धापर्णे दान - रुचि करे ए, शक्ति प्रगट करे निज तो । दान भेद वांछे नहीं ए. अलुब्ध पुण्य गुण बीज तो ॥४८ पात्र विनया भक्ति करे ए, विवेक सहित विज्ञान तो । जीव जत्नें दया करो, कोपे क्षमा निधान तो ॥४९
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