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श्रावकाचार-संग्रह
प्रथम ते शिक्षाव्रत तणा ए, छोड़ो पंच अतिचार तो । पंच इन्द्री भोग संख्या ए, उलंघन करो परिहार तो ॥१४ बीजो शिक्षाव्रत सुणी ए उपभोग वस्तु जेह तो । वली वली जे अनुभवीये ए, उपभोग्य वस्तु जाणो तेह तो ॥१५ निज नारी आदें करी ए, वस्त्र आभूषण माल तो ।
कनक रजत माणिक मोती ए, हीरा छीक परवाल तो ॥१६ देश नयर घर हाट ए, द्विपद चतुष्पद आदि तो । चेतन अचेतन जे वस्तु ए तस कीजे मर्याद तो ॥१७ हस्ती तुरंग पालकी रथ ए, भाजन वस्तु वाहन्न तो । गीत नृत्य वाजित्र आदि ए, गमन शयन आसन्न तो ॥ १८ तिथि नामे अन्न फल रस ए, नित प्रति कीजे नेम तो । निजशक्ति मास वरस ए. जावजीव अथवा सीम तो ।।१९
म विना एक घड़ी ए, वृथा गयो तेनों काल तो । इम जाणि सावधान थई ए, कीजे व्रत संभाल तो ॥२० म विना नर जाणवु ए, कृत्रिम मनुष्य आकार तो । अथवा असंज्ञी पशु- समो ए, जाणें नहीं विचार तो ॥२१ नेम - सहित एक दिन ए, जीवितव्य तस प्रमाण तो । व्रत विना वरस कोटी ए, वृथा जीवितव्य जाण तो ॥२२
इम जाणि नियम धरो ए, नियमें उपजे पुण्य तो । पुण्ये ऋद्धि वृद्धि संपजे ए ऋद्धिपणें सुख धन्य तो ॥२३ मूढ मन चितवी ए, वांछा करे बहुभोग ए तो । उपभोग चिते घणां ए पुण्य विण नहीं संजोग तो ॥२४ उपभोग संख्या करो ए, संख्याथी होय संतोष तो । संतोषे सुख उपजिये ए. नवि होइ राग कुरोष तो ॥२५ उपभोग व्रततणां ए. जोड़ो पंच व्यतिपात तो । व्यतीपातें पाप उपजे ए, पापें होवे व्रतघात तो ॥ २६ अनुप्रेक्षा पहिलो दोष ए, अनुस्मृति दूजो होय तो । अति लौल्य तृष्णा चौथो ए, अनुभव पंचम जाय तो ॥२७ निरन्तर भांग सेवीइए. ते अनुप्रेक्षा नाम तो । भोग-सीम संभारे नहीं ए, ते अनुस्मरणदोष भान तो ॥ २८ लंपट पणें भोग सेविये ए, अति रागे तुल्य होइ तो । भविष्यत भोगवांछा करिए, अतितृष्णा ते जोइ तो ॥ २९ अतृप्तिपणें भोग सेवी ए. अनुभव करे असंतोष तो । पंच इन्द्री उपभोग्य सीम ए, उलंघन पंच दोष तो ||३० उपभोग्य व्रततणा ए, टालो पंच अतिचार तो । सावधान पणें सदा धरो ए, निर्मल शिक्षाव्रत सार तो ॥ ३१
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