________________
पदम-कृत श्रावकाचार
ur
मौखर्य पणे जल्पन बह करे. काज विना वचन ज उच्चरे । हित-अनहित अविचारी कहे. असमोक्ष्याधिकरण ते वहे ॥३६ भोग-उपभोगकारी जे वस्त. अर्थ विना चिते समस्त । ये पंच टालो अतिचार. बीजो व्रत पालो गुणधार ॥३७
वस्तु छन्द त्रिण गुणव्रत त्रिण गुणव्रत धरो भवियण भावे करी। पंच अणुव्रत गुणदायक. सार्थक नाम जेह तणां निर्भर ।
थावर त्रस रक्षा कारण वारण संसार-दुःख दुर्धर ।। जे भवियण जले करी पाले गणव्रत सार । सुर नर सुख ते भोगवी. ते पामें भवपार ॥३८
ढाल रासनी गुणव्रत इम में वर्ण्यव्यो ए, हवे कह शिक्षाव्रत चार तो। शिक्षा जीव हित कारण ए, वारण संख्या संसार तो ॥१ भोग्य वस्तु गिक्षा पहिलो ए, उपभोग्य दूजो होय तो। अतिथि मंविभाग श्रीजो व्रत ए. अंत मलेखणा चौथो जोय तो॥२ भोग्य वस्तु ते जाणिये ए, जे होइ भोग्य एक वार तो। पुनरपि काज आवे नहीं ए, अनुभव होइ निःसार तो ॥३ चन्दन कुंकुम केशर ए, पुष्प फल रस-पान तो। असन खादिम स्वादु वस्तु ए, लेय पेय पकवान तो ॥४ भोग्य वस्तु ते परिहरो ए, सावद्यकारी अहित तो। कन्दमूल अथाणा आदि ए, अनन्तकाय परित्याग तो ॥५ पत्र पुष्प शाक त्यजो ए, नवनीत दुध नहि लाग तो। दोह्यां पछी काचा दूधमां ए, बेहु घड़ी केडे जाणि तो ॥६ सम्मळुन असंख्य होइ ए, इम कहे जिनवाणि तो। पशु दोहि द्ध गालिये ए, उष्ण करो ततकाल तो ॥७ जल करी ते आखरो ए, आलस छांडी तम्हो बाल तो। . पीलु प्रपोटा जांबु बोर ए, बेल सेलर जाति तो॥८ मीठा कडुवा तुंबडा ए, पिंडोला कुसुमां भांड तो। किरकाली गलकल काफल ए, छिदल काचां दही छांछ तो॥९ निज कंठ श्वास योगिये ए, उपजे त्रसजीव राशि तो। देश विरुद्धांरी गणां ए, अवर विरुद्ध कवली जेह तो ॥१० शास्त्र विरुद्धो जे होइ ए, भक्ष तजो बहूँ तेह तो। .... .... .. .... .... .." ॥११ ए द अयोग्य जे जाणिये ए, जीव असंख्य, अनन्त काय तो। लव सुख, दुःख मेरु मम ए, भविजन ते किम खाय तो ॥१२ इम जाणि भोग्य वस्तु ए, कीजे तस मर्याद तो। त्रस थावर-रक्षा हेतु ए, होय नहीं हरष विषाद तो ॥१३
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org |