________________
भावकाचार-संग्रह काज वश पुद्गल-क्षेप करी. प्रेरे परने संज्ञा घरी। इणि परे अतिचार पंच, दोष टालि करो पुण्य संच ॥१८ देश अणुव्रत इणि परें धरो नियम-संख्या अणुव्रत सरे । थाबर जीव त्रस-रक्षा काजि, जल-सहित पालो भव्य राजि ॥१९ त्रीजो गुणवत अनर्थ दड, मन वच काया त्यजो प्रचंड । अर्थ विनाजे कीजे काज, ते अनर्थ पाप जानो समाज ॥२० अनर्थदंड तम्हो दूर करो, पंचविवि सदा परिहारो। तेह तणा सुणो हवे मेद, वृथा पाप कोजे नहिं खेद ॥२१ पाप उपदेशो पेहलो नाम, हिंसा उपदेश दुजो उद्दाम । त्रीजो अपध्यान चौथो दुःश्रुति हाय, प्रमादचर्या पंचम ते जोय ॥२२ पापोपदेश न वि दीजिए, हिंसा झूठ चोरी नवि कीजिए। मेंथुन सेवा परिग्रह मोह, क्रोध मान माया मद लोए ॥२६ भूमि-खनन वृथा राधन नीर, अग्नि-जालण निक्षेप समीर। तरु-छेदन भेदन त्रसजीव, खंडण पीसण पातक अतीव ॥२४ धर्म-विघ्न विहवा आदेश, वापी वेहला सरकप निवेश। धर्म विना जेणे उपजे पाप. तेह उपदेश छोड़ो संताप ॥२५ हिंसातणा उपकरण जे बहु. खड़ग आदि आयुध जे सह । कोस कुदाला रिका दात्र. फरसी सांखल बंधन कुं गात्र ॥२६ अग्नि ऊखल मूसल कुजंत्र. क्षेत्र सारण वन वाडी तंत्र । मंजारि कुर्कट श्वान सिचांण, ते नवि पालो हिंसक अज्ञान ॥२७ दुर व्यापार तजो अपध्यान, पापकारी बहु कुवस्तु संधान । कन्दमूल मधु माखण व्यापार, जिणे उपजे सावध अपार ॥२८ हिंसा मषा चोरी संभोग, रतिचिंतन टालो संयोग । इष्ट अनिष्ट पीडा निदान, आर्त पाप तजो अपध्यान ॥२९ भरत पिंगल संगीत कुनाद, कोकशास्त्र करे उन्माद । दुःश्रुति अष्टादश पुराण, कलकारी परमत कुराण ॥३० कामण मोहण वशि कारी जंत्र, स्तम्भ डम्भ चमत्कारी मंत्र । राज आदि विकथा पंच वीस, करतां सुणतां होइ पाप-उपदेश ॥३१ प्रमाद पणे ते नवि चालीइ, फोके पाप पिंड नवि घालीइ । आलस कीघे सावध उपजे. यत्न विना पुण्य किम नीपजे ॥३२ इम जाणिय छोड़ो परमाद, राग द्वेष तजो विसवाद । अनर्थ दंड तणा अतिचार, पंच भेद करो परिहार ॥३३ कन्दर्प पहेलो व्यतिपात, बोजो कुकर्म त्रीजो मौखर्य बात। असमीक्ष्याधिकरण चौथो होय, भोगोपभोगानथं पंचम जोय ॥३४ काम चेष्टाकारी बहुराग, बीभत्स वचन बोले अभाग। कुत्सित बोले बहुभंड, गालि दुर्वाक्य बोले व्रत खंड ॥३५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org