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पदम-कृत श्रावकाचार
ढाल चौपाइनो पंच अणुव्रत इणि परें कही, त्रण गुणवत हवे मुणो सहा । अणुव्रतने वधारे जेह, ए त्रण ही सार्थक गुण तेह ॥? दिग्-संख्या पहलो गुणवत, बीजो देश व्रत गुण सत्य । योजो अनर्थ दंड परिहार. एत्रणे व्रत करिये मार ॥२ पूरव दक्षिण उत्तर दिसा, अग्नि नंऋत्य वाय ईशान। इन जुत अधो ऊवं दस मेद, एह दिस-संख्या करो तेह ॥३ नदी सागर पर्वत वन जाणि. देश नयर संख्या मनि आणि । गांव योजन तणी करो मर्याद, दिग्-संख्या व्रत गुण अनादि ॥४ भूमि-सीमा कोजे जेतलो. उलंघे नहीं किमे तेतलो। सीमा अभ्यन्तर अणुव्रत होइ, सोमा बाह्य ते महाव्रत जोइ ।।५ थावर त्रस जीव रक्षा कोध. अभय दान सदा तस दोध । दिग-संख्या होइ व्रत गण, महाव्रत पुण्य आये निपुण ॥६ यत्न करि घरो गणव्रत सदा. किणे विसारो निजवन कदा। व्रत तणां छोड़ो अतिचार. हवे कहूँ ते पंच प्रकार ||७ अघो ऊर्ध्व अतिक्रम दोय. तिरछ गमन त्रीजो ते जोय। क्षेत्र-अवधि-लंघन चौथो होय. स्मृति अन्तर पंचम ते सोय ।।८ गिरि-शिखर आकाशे जे चढे ऊवं गमन अतिक्रम जड़े। भू-गर्भ वापा कप गर्तखाणि. अधो गमन अतिक्रम ते जाणि ९ नगर-गमन उलघन जेह, तिरछ अतिक्रम दूषण तह । क्षेत्र-अवधि-लोप न वली करे. सोमस्मति अन्तर ध्यान धरे ॥१० इम जाणोने थई मावधान, व्रततणां छोड़ो दोष वितान । निर्मल गणव्रत सदा वर्ग. निजशक्ति दिग-मच्या करो ॥११ देशविरत हवे तम्हें मुणो. दिग-संख्या माहे ते भणों। निजनयर प्रतोलो भणी. मच्या कोजे सोमा भणी ॥१२ प्रभात समय निरन्तर नणी, सोमा कोजे गांव योजन तणा। ग्राम सेरी पाटिक हाट गेह. अनुदिन संख्या कोजे तेह ॥१३ देश गुणव्रत इाण परिवरो, निजशक्ति संख्या अनुसरो। तहतणा छोड़ा अतिचार, हवे कहु ते पंच प्रकार ॥१४ आनयन नाम पहलो अतिचार, पर-प्रेषण बीजो प्रकार । वीजो शब्द, रूप चौथो होय. पुद्गल क्षेप पंचम ते जोय ॥१५ रहते निज सीमा मझार, पर पाहि वस्तु अणावे मार। उपदेश देय करावे काज, पर-प्रेषण ते दोष-समाज ॥१६ आपण सीमा-माहे रहो, काज करावे शब्दें कही। रूप देखाड़ी पर आपणों, सेवक पेंरी कीजे घणो ॥१७
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