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प्राक्काचार-संबह सेनें प्राण तम्हो तजो हो, सती सुणों मुझ बात । नयर प्रतोली हुं जड़ हो, आलउ-तारु प्रभात, रे जीवड़ा ॥६३ राजा प्रधान श्रेष्टीने हो, सरखं सुपन देखाडि। सतो तणे वाम पाथ हो, नयर-पोल उघाड़, रे जीवड़ा ॥६४ एहवं कहि मन थिर करी हो, देवी गई निज ठाम। तिणी रात्रं स्वप्न देख्यु हो, देवाणी पोल उदास, रे जीवड़ा ॥६५ नयर क्षोभ ते सांभलो हो, रुंधो पुरी-पोल चार। राजा आदि सहुं आवोया हो, रात्रे स्वपन संभार, रे जीवड़ा ॥६६ नयर नारी सह तेडीआ हो, देवाड्यो वाम पाय। प्रतोली न वि उघडी हो. लाजी ते पाछी जाय, रे जीवडा ॥६७ पछे सती नीली आणी हो, देवाडयो डांवो कदम।। चारी पोल तब उघड़ी हो, लोक तणो गयो भरम, रे जीवड़ा ॥६८ जय जयकार तब नीपनों हो, देव करे पुष्प वृष्टि ।। सयल सती माहें शिरोमणि हो, नीली सती उत्कृष्ट, रे जीवड़ा ॥६९ वस्त्र-आभूषण भूप दीया हो, पुहती कीधी निज गेह । गीत नृत्य महोच्छव करे हो, कलंक ठल्यो सहु तेह, रे जीवड़ा ॥७० इहि लोके सुर पूजा लही हो, परलोके पायी पद देव । शील व्रत फल्या सती हो, नीली जस गुण हेव, रे जीवड़ा ॥७१ सती सीता शील बल हो, अग्निकुंड जल पूर । सूरजें पण पूजा कही हो, सोलमें स्वर्ग हुओ सुर, रे जीवड़ा ॥७२ द्रौपदी चन्दन बाला आदि हो, शीलतणा फल जोइ । इहि लोके जस गुण पायीने हो, परलोके देव पद होइ, रे जीवड़ा ॥७३ सुदर्शन श्रेष्ठी भलो हो, तेहनों गुण प्रसिद्ध । सुर नर पूजा पायीने हो, शील फल हुवो सिद्ध, रे जीवड़ा ॥७४ जयकुमार सेनापति हो, शील प्रशंसा इन्द्र कीध । देव आदी परीक्षा करी हो, जस कीत्ति जय लोध, रे जीवड़ा ॥७५ सकेत श्रेष्ठी आदें करी हो, जिणे जिणें शील पाल। सुर पूजा महिमा लही हो, संसार तणा दुःख टाल, रे जीवड़ा ॥७६ तेह कथा तमें जाण ज्यो हो, जिन शासन मझार । शील महिमा किम वर्णहो, किम कह्यो जाइ पार, रे जीवड़ा ॥७७ शील जिणें न वि पालीयो हो, तेह तणीं कहं बात । जमदंडी माता शिवा हो, भूपे कियो तस घात, रे जीवडा ॥७८ दुःख देखि दुर्गति गयो हो, जमदंडी कोटवाल । लंपटपणे माता सेवी हो, पाम्यो बहु कष्ट जाल, रे जीवड़ा ।।७९ रावण तिहुं खंडे राजीया हो, सीता तणे अभिलाष । निन्दा अपजस पायीयो हो, पाम्यो नरक निवास, रे जीवड़ा ॥८०
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