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________________ पदम-कृत श्रावकाचार धवलश्रेष्ठी दुरमती हो, मदन मंजूषा करी आस । धन जस भ्रष्ट थयो हो, सहे दुर्गति-वास, रे जीवड़ा ॥८१ अमता महादेवी नामें हो. कब्ज लंपट कनार । छट्टो नरक भूमि उपनी हो, जसोधर कंत मार, रे जीवड़ा ।।८२ ए आदें बहु नर नारी हो, जेणे शील न रक्ष । तेह दुःख सुवर्णवु हो, संसार दुःख तणा दोष, रे जीवड़ा ॥८३ वस्तु छन्द शील पालो शील पालो, भविजन भविजन भावे करी । शील चिन्तामणि कामधेनु, शील कल्प वृक्ष अमूल्य । मनोहर सूर नर वर पद देई नें, अनुक्रम आपे मोक्ष निरभर ॥ जे नर नारी शील पालसी, टाले सर्व अतीचार | जिन सेवक पदमो कहे, धन धन्य ते अवतार ||८४ __अथ पंचम अणुवत वर्णन । ढाल विणजारानी चौथो कह्यो शीलवत, पांचमो व्रत हवे सांभलो, विणजारा रे। परिग्रह संज्ञानाम, थूल अणुव्रत ऊजलो, विणजारा रे ॥१ श्रेत्र वास्तु धन धान्य, द्विपद वली चतुष्पद, विणजारा रे । आसन शयन कुप्य भांड, आदि पद दश भेद, विणजारा रे।।२ क्षेत्र करो मर्याद, हल भूमि संख्या लीजिये, विणजारा रे । हाट घर तणा वास, कोटि-कोटि संख्या कीजिये, विणजारा रे ॥३ धन सौवर्ण रत्न रूप्य, अर्थ मर्यादा कीजिये, विणजारा रे । गोधूम चणका शालि, कोग कोदव आदें संक्षेपिये, विणजारा रे ॥४ दासी दास कर्मकारि, चौपद महिषी गोकुल, विणजारा रे। शकट सिंहासन रथ, जान जंपान चकडोल, विणजारा रे ॥५ टोल खाट पट पाटि, वस्त्र आभूषण नारीना, विणजारा रे । धातुतणा भाजन, क्रयाणा वस्तु-रक्षण, विणजारा रे ॥६ क्षेत्र आदि दस विध परिग्रह तणी संख्या करो, विणजारा रे । छांडि ममता मोह, निज मनें संतोष धरो, विणजारा रे ॥७ छोड़ो बहु आरंभ, आरंभथो हिंसा घणी, विणजारा रे । हिंसा तृष्णाकारी पाप, तृष्णा पाप दुख खाणी, विणजारा रे ।।८ परिग्रह पाप नुं मूल शूल-समो साले सदा, विणजारा रे । जिम जिम मिले बधन, तिम तिम लोभ बाघे तदा, विणजारा रे ॥९ लोभ ए दावानल धन, ईंधन अधिको बले सही, विणजारा रे । तृष्णा तेल संचित अधिक पणे घणु तल फले, विणजारा रे ॥१० लोभे करे सह क्षोभ, लोभके हर्ने माने नहीं, विणजारा रे । लोभे बह अवगुण, लोमे दुःख सदा सहे, विणजारा रे ॥११ संतोष पाणी पूर, लोभ अनल ते उछले, विणजारा रे । तृष्णा तजो पाप बीज, मन सुघेते योग वो, विणजारा रे ॥१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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