________________
दम
Jain Education International
श्रावकाचार संग्रह
शीले अग्नि ते जल थाइ हो, शीले सर्प पुष्पमाल ।
शीले केशरी मृग थाइ हो, शीले व्याघ्र सियाल, हो जीवड़ा ॥ २७ शीले विष अमृत होइ हो, समुद्र गोष्पद थाय ।
शीले वन भवन होइ हो, महिमा कह्यो किम जाय, रे जीवड़ा ||२८ शीले शत्रु सहु मित्र थाइ हो, शीले संकट विनाश ।
शीले सुर नर पूजा करे हो, शोले अतिचल वास, रे जीवड़ा ||२९ इम जाणी शील सदा पालीइ हो, टालो दोष तुरन्त ।
शील व्रत किणें पालीयो हो, तेह कहुँ वृत्तान्त, हो जीवड़ा ॥ ३० आरजखण्ड एह रूअड़ो हो, लाड विषय विशाल ।
भृगुकच्छ नयर भलो हो, राजा सिंहां वसुपाल, हो जीवड़ा ॥ ३१ जिनदत्त श्रेष्ठी तिहां वसे हो, जिनदत्ता स्त्री भरतार |
तस तणी कूखें उपनी हो, पुत्री नीली नाम धार, हो जीवड़ा ||३२ रूप यौवन ते संचरी हो, जिनधर्म करे भवतार ।
निज सहेली पर वरी हो जिन गेह गई एक वार, हो जीवड़ा ||३३ अष्ट भेदे जिन पूजिया हो, जल आदि फल-पर्यन्त ।
जाप जपी स्तवन भणो हो, कायोत्सर्ग लेइ रही सन्त, हो जीवड़ा ||३३
अवर श्रेष्ठि तिहां वसे हो, समुद्रदत्त तस नाम ।
सागरदत्ता नारी ते भणी हो, पुत्र सागरदत्त अभिराम हो जीड़ा ॥ ३५ रूप यौवन ते मंडीयो हो, क्रीड़ा करे अ कुमार ।
तें कन्या तेणें दीठी हो, लावण्य गुणह भंडार, हो जीवड़ा ॥ ३६
स्वर्ग तणी ए अपछरा हो, अथवा नाग कुमारी ।
चन्द्रणी ए रोहिणी ए रोहिणी हो, अथवा खेचर ते नारी, हो जीवड़ा ||३७ कन्या रूपें नर मोहीयो हो, आव्यो ते निज गेह ।
प्रियदत्त मित्रनें कहे हो, मन तणी बात सहुँ तेह, हो जीवड़ा ॥ ३८ निज तातें ते साम्भल्यो हो, साहू बोले तिणी वार ।
वच्छ, आपण बौद्धधर्मी हो, ते जैन गुणधार, हो जीवड़ा ॥३९ आपणनें ते लेखवे हो, मातंग लोक समान ।
तो कन्या तुझ किम दीये हो, ते श्रावक गुणमान, हो जीवड्रा ॥४० कपटपणें ते श्रावक थयो हो, पूजे जिन गुरु पाय ।
शास्त्र सुणें व्रत आचरे हो, कूट जाण्यो किम जाय, हो जीवड़ा ॥४१ कन्या मांगु तिणें कीयो हो, सावरमी थइ ते माह ।
निष्कपटी जिनदत्त श्रेष्ठी हो, जैन जाणि कीयो उच्छाह, हो जीवड्रा ॥४२ ते कन्या तेह ने दीधी हो, परण्यों सागरदत्त ।
बहु अर निज धरि आदोआ हो, सांचो धर्म फल सत्त्य, हो जीवड़ा ॥४३ मुक्यों तेणें धर्म जिन तणों हो, वली थयो बौद्ध भक्त । नारी निज मन चिन्तवे हो, दैवे कीधो अयुक्त, हो जीवड़ा ॥४४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org