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________________ पदम-कृत श्रावकाचार पुरुष मन नवनीत समो हो, पर-रामा अग्नि कुज्वाल। राग तापि तल तले हो, नर पतंग बाले बाल, हो जीवड़ा ॥९ दूर रहि नारी देखीइ हो, पुरुष मन विनाश । जिम कणक काकडि गंध हो, वेगे थाइ ते निराश, हो जीवा ॥१० हाव भाव विभ्रम करी हो, पुरुष तणों मन पाडि । कपट माया मेंणों देइ हो, भोला नर रमाड, हो जीवड़ा ॥११ पर-नारी संगे पाप होइ हो, झटके लोक दे आल । निन्दा अपजस विस्तरे हो, भूप दंडे ततकाल, हो जीवड़ा ॥१२ मन वचन कायाई करी हो, पर नारी संग टाल । कृत कारित अनुमोदना हो, नव भेदे शील पाल, हो जीवड़ा ।।१३ वेश्या संग तम्हो परिहरो हो, जेह वु उच्छिष्ट अन्न । रजक शिला-समी सही हो, चरबी ऊच नीच जन, हो जोवड़ा ॥१४ मांस-भक्षण करे पापिणी हो, करे ते मद्य कुपान । ते वेश्या किम सेवीइ हो, सेवे लम्पट ते खान, हो जीवड़ा ॥१५ धनवंत नर ने आदरे हो निद्रव्य करे परिहार । द्रव्य काजि ते स्नेह धरे हो, भोला भूला गंवार, हो जीवड़ा ॥१६ जेणे नर वेश्या आदरी हो, ते थया लाज-भ्रष्ट । धन यौवन ने गुण तजी हो पाम्या नरक निकृष्ट, हो जीवड़ा ॥१७ इम जाणी रामा पर तजो हो, छोड़ो वेश्या तणुं संग। सधणी निधणी नारी तजो हो, पालो शील अभंग, हो जीवड़ा ॥१८ ब्रह्मचर्य व्रत तणां हो, छोड़ो पंच व्यतिपात ।। तेह भेद हवे सांभलो हो, जेह थी पाप-संघात, हो जीवड़ा ॥१९ पर विवाह पहिलो भेद हो, इत्वरीया-गमन दूजो होइ । पर गृहीत अनगृहीत हो, त्रीजो भेद ते जो दूरे, हो जीवड़ा ॥२० अनंग क्रीडा भेद चौथो हो, अभिनिवेश तीव्र काम। इणे दोषे पाप उपजे हो, पंच अतो चार एह नाम, हो जीवड़ा ॥२१ पर विवाह न वि कीजीये हो, कीधे न होइ जस पुन्न । इत्वरिका दासी जे नारी हो, न कीजे तेह गेह गम्य, हो जीवड़ा ॥२२ परगृहीत अनगृहीत नारी, तस घर गमन त्यजानि । योनि विना अवर अंगे हो, अंग क्रीडा न वि कीजे, हो जीवदा ॥२३ तीव्र काम जेणे उपजे हो, नीपजे उद्रेक राग। तेह वस्तु न वि सेविये हो, दोष करो परित्याग, हो जीवड़ ॥२४॥ इणि परे पंच भेद हो, छोड़ो ब्रत अतिचार । स्थूल अणुव्रत पालिये हो, नव ब्रह्मचर्य गुणधार, हो जीवड़ा ॥२५ निर्मल ब्रह्मचर्य जे धरे हो, दृढ मने भवतार । ते धन्य ते पुण्यवन्त हो, तेह गुणनों नहीं पार, हो जीवड़ा.॥२६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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