________________
पदम-कृत श्रावकाचार इम जाणी सत्य सदा ए, जे बोले सुख खाणि तो। सुर नर वर पद भोगवे ए, अनुक्रमें पामें निर्वाण तो ॥३८ अचौर्य व्रत हवे सांभलो ए, तीजो अणुव्रत नाम तो। स्थूल पणे ते वर्णवु ए, स्तेय विरति गुण ग्राम तो ॥३९ अण आप्पो जे पर तणु ए, चेतन-अचेतन द्रव्य तो। आपण पै जे लीजीइए, ते चोरी पाप सर्व तो ॥०४ पर द्रव्य जो चोरीइ ए, तो होइ विश्वास-घात तो। विश्वासघाते हिंसा होइ ए, हिंसाथी पापवन्त होइ तो॥४१ आपणपे न वि चोरिये ए. चोरी दौजे न वि अन्य तो। परलेता द्रव्य देखीये ए, न वि कीजे अनुमित्त तो ॥४२ वाटे पड़ियो पर द्रव्य ए, थापण वीसरे चित्त तो। ते किम्हें न वि राखीये ए. मन वचन काया करी चित्त तो ॥४३ पड़ी देखी वस्तु बहु मूल्य ए, उलंघे न हि,जेह तो। तो सहँ समक्ष लेई मूको ए, पूज्य काज जिन गेह तो ।।७४ चोरी करे पातक बहु ए, कूट कपट दुख खाणि तो। । निन्दा अपजस विस्तरे ए, निजधर्म गुण होइ हाणि तो ॥४५ वध बंधन छेदन करे ए. राजा देइ बहु दंड तो। खर-आरोहण विडंबण ए, दुख देखाडे प्रचंड तो॥४६ चोरी आणे पर वस्तु तो ए, जो दीजे लेइ मोल तो। माहो माँहे मर्म कही ए, भय देखाडे अतोल तो ॥४७ जो राजा लीधो जाणे ए, तो हरे मूल सहित तो। यष्टि मुष्टि प्रहार करी ए, कष्ट पमाडे अहित तो ॥४८ जीवितव्यथी वालो घणु ए, धन जाता मूकी प्राण तो। तो ते धन किम लीजिये ए, हिंसाकारी ते जाण तो ॥४९ त्रण आदें रत्न लगे ए, सधणी होइ जे वस्तु तो। अण पूछे जो लीजिये ए, ते चोरी समातुल्य तो ॥५० जे करता इम जाणीइ ए, पर देखे रखे कोइ तो। तेह काज नवि कीजिये ए, कारण विना व्रत जाइ तो ॥५१ धन चोरे तुं एक लो ए, धन कुटुम्ब सहु खाइ तो।। वध बंधन सहे तुं अकेलो ए, एकलो नरकें जाइ तो ॥५२ विष भखवा सारुं सही ए, विष हरे एक भव-प्राण तो। चोरी पाप दुख-दोहिल ए, जनमि जनमि दुख खाणि तो ॥५३ इम जाणिय चोरी त्यजों ए, न्यायविधि करो व्यापार तो। हित मित्त सुख कारीया ए, संतोष धरो मन सार तो ॥५४ जे हवं कर्म उदय आपणु ए, ते हवं फल देई सोय तो। लाभ-अलाभे समप्रीति ए, नवि कीजे राग द्वष तो ॥५५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org