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श्रावकाचार-संग्रह सत्य व्रत किणे पालीयो ए, कहुँ अ तेइ व्रतान्त तो। धनदेव श्रेष्ठि तणो ए, कथा सुणों तुम्हें सन्त तो ॥२० जम्बूद्वीप सुहावणों ए, मेरु तणी पूर्व विदेह तो। पुष्कलावती क्षेत्र नाम तो ए, पुंडरीकिणी पुरी एह तो ।।२१ धन देव श्रेष्ठी वसे ए, अल्प ऋद्धि तणो नाथ तो। जिनदेव दूजो श्रेष्ठि ए, बहुधन जन बहु साथ तो ।।२२ एक दिवस ते जिनदेव ए, करवा चाल्यो व्यापार तो । धन देव साथे लीयो ए, संच कीयो तिणे वार तो ॥२३ वणिज-वित्त जे बाध तो ए, तेह माँहें भाग आधो आध तो। माहो माँहे ते संच कीयो ए, साखि न कीयो कोई साध तो ॥२४ ए हवु कहो ते संचर्या ए, परदेसें पुण्य पसाइ तो। द्रव्य घणों उपराजीयो ए, जिनदेव मन लोभ थाइ तो ॥२५ कुशल क्षेम पुरी आवीया ए, धनदेव मांगे निज भाग तो। जिनदेव आपे नहीं ए, लोभ करे द्रव्य राग तो ॥२६ जिनदेव आपे झूठो बोलीयो ए, अल्प देइ तस वित्त तो। सत्यवादी धनदेवनों ए, भाग मांगे निज हित्त तो ॥२७ मांहो मांहे झगड़ो करे ए, बुझे नहीं निज बृद्धि तो। प्रजा लोके प्रीच्छयां नहीं ए, पछे गया राज-सान्निध्य तो ॥२८ अग्निदेव तिहाँ कीयो ए, सुध पाम्यो धनदेव तो। सत्यपणे साहस बल ए, जय पाम्यो ते सेवि तो ॥२९ सत्यपणे अग्नि जल थाइ ए, सती सर्प पुष्प माल तो। सत्ये सुर नर पूजा करे ए, सत्ये जय बाल गोवाल तो ॥३० जिनदेव अशुद्ध होवो ए, राजसत्ता मझार तो। झूठू बोले ते बापड़ा ए, सह मिली कियो धिक्कार तो ॥३१ तस भूपें न्याय विधि ए, वित्त अल्पावु, तरु सर्वतो । वस्त्र आभूषण पूजिया ए, लेइ आव्यो घर द्रव्य तो ॥३२ धनदेव जय पामीयो ए, सत्य बोली इह लोक तो। जस महिमा गुण विस्तर्यो ए, सुख पाम्यों परलोक तो ॥३३ जिनदेव झूठु बोलीयो ए, द्रव्य लीयो सहु तेह तो। अने वली अपजस पामीयो ए, पार्नु परभवं कष्ट तो ।।३४ पर्वत झूठी साख भरी ए, वसु नाम मूढ़ राइतो। निंदा अपजस पामीयो ए, सातमें नरकें जाय तो ॥३५ सत्यघोष विप्रतणी ए, पर्वत वसु भूपाल तो। तेह कथा तम्हें जाण ज्यो ए, महापुराण विशाल तो ॥३६ झूठू बोले जे जीवडा ए, भंड कहें तस लोक तो। ख्याति पूजा जाई तस ए, परभवे दुःख सहे तेह तो ॥३७
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