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पदम-कृत श्रावकाचार
झूठा वचन न बोलिये ए, कडुआ कठिण कठोर तो । कूट कपट कड़क सत्य जो ए, मरम मोसा घनघोर तो ॥२ अलिय वयण नवि बोलीये ए. छल छद्म वंचन द्रोह तो । परपंच पर वंचन ए, संच न पाप संदोह तो ॥३ असत्य वाणी तमें परिहरो ए, कूडी साख कुबोल तो । निन्दा अपजस विस्तरे ए, ते टालो निटोल तो ॥४ पर पीड़ाकारी वचन, पर-पैशुन्य अपवाद तो । जिणें बोले अधर्म होइए, तेऊ तजो विसंवाद तो ॥५ जो बोले आप पीडिये, ते किम पर सोहाय तो । निर्लज्जपणें न वि बोलीए, जिणें उपजे पर दाह तो ॥६ तीव्र कोपकारी त्यजुं ए, मान मायाने लोभ तो । राग द्वेष मद उपजे ए, जिणे होई पर क्षोभ तो ॥७ जिण बोले हिंसा होय ए, उपजे असत्य अपवाद तो । मरम बोलवाड़ी त्यजो ए, सूल समी जे भास तो ॥८ जिणें सांचे दुख उपजे ए, वघ बन्ध हुई परछेद तो । विष था विष समी तज्यो ए. वेदनाकारी न खेद तो ॥९ अविचायुं न वि बोलीए ए, न वि दीजे केइतें आल तो । आ रौद्र दु ध्यान करी ए, केहतें 'न दीजे गाल तो ॥१० आपण झूठ न बोलीये ए, बोलावी जे नहीं कोई तो । अनृत न वि अनुमोदीये ए, मन वच कायाइ जोइ तो ॥११ सत्य वचन सदा बोलीये ए, हित मित कारी मिष्ट तो । जेणें बोले जस होइ ए, आपण पर होइ इष्ट तो ॥१२ असत्य बोले पाप उपजे ए, पापें सहि ते संताप तो । नरक पशू गति ते लहिए, रहे दुखें अति व्याप तो ॥१३ सत्य बोले पुण्य उपजे ए, पुष्ये होइ बहु सुक्ख तो । सुर नर वर पद पायीइ ए, कहीये न वि देखे दुक्ख तो ॥१४ इम जाणी सत्य बोलीइ ए, टालीए पंच अतिचार तो । स्थूल सुव्रत तेह तणा ए, हवे सुणो तेह प्रकार तो ॥१५ मिथ्या उपदेश न वि दीजीइ ए, एकान्त होइ जे बात तो । ते तो न वि प्रकाशीये ए, न वि कीजे तेह बात तो ॥१६ कूट लेख न वि कीजिये ए, तेणें होइ विश्वास घात तो । थापण मोसो हरीइ नहीं ए, न्यासापहार ते जाति तो ॥१७ साकार मंत्र तुम त्यजो ए, न वि कीजे मरम प्रकाश तो । पर ईर्ष्या न वि कीजीइ ए, ईर्ष्या पाप-निवास तो ॥१८ इणि परि पंच भेद घरो ए, छोड़ो दोष अतिचार तो । निर्मल सत्य व्रत पालीड ए. जिम तरीए संसार तो ॥१९
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