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श्रावकाचार-संग्रह भूपति ए दीयो आदेश, नंदन मातंग मारवा ए। क्रोघे ए नहीं शुद्धि बुद्धि, गुण दोष विचारवाए ॥६७ सेवक ए मिल्या बहु दुष्ट, यष्टि मुष्टि प्रहार करे ए। बांधीयो ए वलि मातंग, मारण लेइ ते संचरयां ए॥६८ विडंषन ए वा देई बहु दुष सिसुमार द्रह नाखीउ ए। राजपुत्र ए हिंसा पाप दुर्गति दुख ते दाखीया ए॥६९ मातंग ए नेम प्रभाव जल देव आसन कंपीया ए। जल उपरे ए कमल आसन, तिहां मातंग आरोपिया ए॥७० नीपनों ए जय जयकार, गीत नृत्य बाचित्र घणां ए। सुर नर ए करे पुष्प वृष्टि, प्रातिहार्य भूते सुण्यां ए॥७१ निगर्व ए थयो तब राइ, अन्याय कीयो में मूढपणो ए। आपीयो ए मातंग पास, क्षमितव्य करे वली-वली घणो ए ॥७२ सुर नर ए देय सनमान, वस्त्र आभूषण आपीया ए। मातंग ए आण्यों निज गेह, महोत्सव करि जस थापीया ए ॥७३ धन धन्य ए नेम प्रणाम, सुधन धन्य जस धणों ए॥ जाव जीव ए पालियो नियम निश्चल मन करी आपणों ए॥७४ इहि लोक ए पामीउ सुख, मरण समाधि साधीयो ए। मातंग ए पाम्यो देव लोक, महधिक पद आराधीयो ए ॥७५ जुमओ जुमओ ए पुण्य प्रभाव, किहां मातंग नीच जाति ए। उपनों ए ते देवलोक, ऋद्धि वृद्धि गुण ख्यातिय ए ७६ उत्तम ए नरपति वंश, बलि कुमार हिंसा करी ए। पांमीयो ए अपजसं दुक्ख, पापे नीच गति अणुसरी ए ॥७७ इमि जाणि ए धर्म उत्तम, उत्तम बन्दो सुरोझीये ए। धर्म हाणि ए जाइ नीच गति गुणीब गुणीनें बुझीये ए ।।७८ धनश्री ए जार कुं नारि, जार लक्षीते पापिणी ए। मारीयो ए गुणपाल पुत्र, अपकीत्ति पांमी आपणी ए ॥७९ भूपति ए दीयो बहु दंड, खर-आरोहण बिडंबण ए। धनश्री ए जीव-हिंसा पाप, दुर्गति पांमी खंडण ए ॥८०
बोहा
जीव दया व्रत निर्मलो मातंग नाम जमपाल । स्वर्ग तणो सुख पांमीयो, धन धन्य दया गुण माल ॥१ जीव-हिंसा करि पापिणी, धनश्री नामि कुमार । दुख दुरगति ते सही, धिग हिंसा असार ॥२ हिंसा समु कोइ पाप नहीं, हूवो होसे वर्तमान । दया समो कोइ धर्म नहीं, एहवो कह्यो जिन भान ॥३ इम जाणीय निश्चल करी, दया पालो गुणधार । सुर नर सुख ने भोगवे, पांमे मोक्ष भवतार ॥४
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डाल अहिंसा अणुव्रत वर्णव्यो ए, हवे अ कहुँ सत्य व्रत्त तो। बीजो अणुव्रत निर्मलो ए, थूलपणे जीव हित तो ॥१
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