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पदम-कृत श्रावकाचार नहीं तो ए देऊ तुम्हें दंड, मुझ आज्ञा भांजी किणि ए। गुप्तचर तल रक्षक ए मुकीया चार, रातें घर जइ सुर्णे ए॥४९ तिण समें ए माली निज गेह. अति अंधारे आवोयो ए। नारी ऊ ए पूछे निजकंत, असुरो तु का भावीयो ए ॥५० मालीय ए कहे सुण बात, राजपुत्र मोढो हण्यो ए। तिण समें ए रह्यो हुँ झंप, मुझने भय घणों उपनो ए॥५१ एहवं ए सुणी संबंध, चर आयी भूपने को ए। प्रभात ए पूंछयो माली तेह, निर्भयपणे ते सहु लह्यो ए॥५२ तब भूपर्ने ए उपनों कोप, लोप कीयो आज्ञा तणो ए। तल रक्षक ए मलावो वार, दुष्ट खंड करो घणों ए ॥५३ मातंग ए यमपाल नाम आव्या तल वर तस घरे ए। आवता ए देखी तेह, प्रच्छन्न रह्यो तिणी समे ए ॥५४ तल रक्षक ए पूछी तस नारि. किहाँ गयो मातंग आज ए। नारी कहे ए सुणों कोटवाल, घर नहीं, गयो निज काज ए॥५५ तल रक्षक ए कहें तिणी वार, भाग्य नहीं मातंग तणो ए। राज पुत्र ए मारी ने आज, वस्त्र आभूषण द्रव्य घणो ए ॥५६ तब नारी ए उपनो लोभ, हस्त संज्ञा ते देखाडीयो ए। घर तणे ए सुणे रह्यो तेह. तब बलें तेणे काढीयो ए॥५७ मातंग ए कहे सुणो बात, घात जीव छे मुझ तिम ए। चौदस ए दिन व्रत आज, कीजे कृपा कहो इम ए ॥५८ तल रक्षक ए पाम्यां कोप, हठ करी ते डोगया ए। राय आगल ए कही तस वात, घात नहीं विस्मय भया ए॥५९ मातंग ए कहे सुणो नाथ, हाथ जोड़ी ऊभो रहो ए। स्वामी मुझ ए वीनती अवधार, सार नियम कथा लही ए ॥६० एक दिन ए मुझ डसीयो सर्प, मूर्छा आयी धरणी पडयो ए। मूकीयो ए हु लेइ समसान, सज्जन मिली घणु रुले ए॥६१ मुनिवर ए ऋद्धि गुणवंत, शरीर-स्पर्श-पवन बले ए। निर्विष ए हुई मुझ देह, चेतना आयी मूर्छा वली ए ॥६२ सावधान ए हुओ तिणि वार, मुनिवर बोल्या कृपावंत ए। वधतणो ए मुझ दीयो नेम, चौदस एक दिन गुण संत ए॥६३ ते नियम ए पालुं भवतार, सार जीव हण वातणो ए। गुरु साक्षी ए लीयो जे व्रत, हित जीव सदा घणु ए ॥१४ प्राण त्याजे ए नवि छोडु नेम, प्राणी जन्म-जन्म घणुं ए। दुर्लभ ए जीव दया धर्म, समकारी भूपें सुण्या ए॥६५ तब कोपे ए कहते भूप, तूं चंडाल अधम सही ए। निर्मल ए श्री जिन धर्म, नेम तुझ योग्य नहीं ए॥६६
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