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श्रावकाचार-संग्रह सुर नर ए वर पद होइ, ऋद्धि वृद्धि बुद्धि धणी ए। जेह जेह ए उपजे सुख, ते सह फल दया पणे ए॥३१ तिल सम ए कन्दमूल मांहे, जीव अनन्त निगोद भर्या ए। सूक्षम ए गोचर नहिं दृष्टि, केवलज्ञान श्री जिन कह्या ए॥३२ - तिल सम ए कंदमूल भक्ष तो ते जोव अनन्त मरे ए। अल्प सुख ए जिह्वा लोल, बहु जीव ते घात करे ए ॥३३ नरक पश ए गति अवतार, हिंसा ए पामे ते बापडाए। क्षुधा तृषा ए सहेय सन्ताप, जन्मि जन्मि दुःखे जड्या ए ॥३४ हीन दीन ए नर दारिद्र दखी अदोर्भागी दोहिलाए। रोग सोग ए कष्ट वियोग, अल्प आयु ते पामीया ए॥३५ नर नारी ए हइ निरधार, बन्ध्या नारी ते सही ए। एह आदि ए हु बहु कष्ट, ते फल पाप हिंसा सही ए ॥३६ इम जाणिय कीजे दया जीव, जिहां दया तिहां धर्म जए। जिहां धर्म ए तिहां होइ सुक्ख, सुक्ख तिहां शिव पद फल ए ॥३७ नर नारी ए पशु बालक, कर्ण नासा न वि वीधि ए। न वि छेदी ए तस तणा अंग, छेद नाम न छेधिमे ए॥३८ भार बहु ए जे नर ढोर, मानथीं अधिक न रोपीइ ए। बापडा ए पर-वश तेह, भार-मान न वि लोपइ ए ॥३९ मानुष ए पशु ए हवाल, अन्न पान न वि रुधीइ ए। निज पर ए पीड़ा होइ, ते विती प्रात मन सोधीइ ए ॥४० इण परि ए पंच अतीचार, जीव दया व्रत तणां ए। जल करोए टालो निर्दोष, प्रमाद विषय ते जो घणां ए ॥४१ अतीचार ए रहित धरे व्रत, सोल में स्वर्गे ते उपजे ए। उत्तम ए नर पद होइ, अनुक्रमें शिव मुख संपजे ए॥४२ प्रथम ए अणु व्रत एह, जत्न करी पालो सदा ए। मातंग यमपाल नाम, तेह कथा हवे सांभलो ए॥४३ सौरम्य ए देश मझार, पोदनपुर नयर धणी ए। महाबल ए नामें भूपाल, तस पुत्र बलि दुर्मती ए ॥४४ नन्दीश्वर ए अष्ट दिवस, भूपें अमार आण दीधी ए। जे कोई ए करसे जीव वध, ते मोकलुं जम सन्निधी ए ॥४५ राजपुत्र ए बलिकुमार, भक्ष करे मांस तणो ए। बन जाइ ए तेणें मूढ, गूढपणे मीढयो हणो ए॥४६ बलि जाणे ए न वि देखे कोई, जिह्वा लम्पट मांस ग्रह्यो ए। तिण समि ए चम्पा वृक्ष, ऊपर माली दप्पि रहो ए ॥४७ सन्ध्या समय ए आव्यो नहीं मेष, राय कहे कुण कारण ए। पूछियो ए निज कोटवाल, मीढो जुओ के तस मारण ए ॥४८
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