________________
पक्षम-कृत श्रावकाचार रात्रि भोजन दूर करो ए, नरेसुमा, भेद सुणो हवे तेह । सूर्य उग्यां घड़ी विहुँ पुठे ए, नरेसुआ, भोजनकाल छै तेह ।।४९ दिवस दोय घड़ी जब होय ए, नरेसुआ, ति वार पहिलो आहार । सूर्य किरण मंद दीसइ ए, नरेसुआ, निशा समो तिणि वार ॥५० संध्या समै जे भोजन ए, नरेसुआ, प्रगट न दीसे भान । निशि-आहार ते जाणीइ ए, नरेसुआ, दिवस तणे अवसान ॥५१ अंधारे अगासडे ए, नरेसुआ, जिहां नहिं गोचर दृष्टि । असन तिहां न वि कीजिइ ए, नरेसुआ जिहां दीसे नहीं स्पष्ट ॥५२ प्रमादी जे लोभीया ए, नरेसुबा, ते वाहें निज अक्ष । जिह्वा लम्पट वा पडा ए, नरेसुआ, रयणी देखे प्रतक्ष ॥५३ बुवडत बिम्ब उ तावला ए, नरेसुआ, पशु परि करे आहार । भोजन करे ते वाउला ए, नरेसुआ, रुले घणु संसार ॥५४ डंस कीट पतंगीआ ए, नरेसुआ, बह जीव पड़े सूक्ष्म । . अन्न रस तक्र मांही ए, नरेसुआ, त्रस जीव दीसे केम ॥५५ रात्रं भोजन जो कीजीइ ए, नरेसुआ, तो ते जीव हुइ भक्ष । मांस-आहार सम ते सही ए, नरेसुआ, दूषण दीसे समक्ष ॥५६ मढ जे रात्र जीमिइ ए, नरेसुआ. तेन सरूप राक्षस जेय । जाति-अन्ध सम ते कहीइ ए, नरेसुआ, न वि जाणे हेयाहेय ।।५७ तम्बूल सुं जल मूकोने ए, नरेसुआ, जो अणसण आथमें सूर । भोग्य अशन फल जो लीइ ए, नरेसुआ, तो दर्शन तेहनें दूर ।।५८ रात्रि तणा रांध्या जीमिइ ए, नरेसुआ, ते कहिए मूढ गंवार । स्थूल सूक्ष्म बहु जीव मरे ए, ते नहीं मूल गुण धार ॥५९ निशा-आहार पापकारी ए, नरेसुआ, नरकगत्ति-अवतार । पल्योपम सागर तणां ए, नरेसुआ, दुःख सहे पंच प्रकार ॥६० क्रूर पशूगति ऊपजे ए, नरेसुआ, सर्प वीछी व्याघ्र व्याल । मांजार कूकर सूकर ए, नरेसुआ, काक पंखी विकराल ॥६१ पापी नीच नरकगति लहे ए, नरेसुआ, हीन दीन दालिद्र । अल्प आयु काय रोगीया ए, नरेसुथा, विकल वियोगी क्षुद्र ॥६२ ए आदे सुर नर तणा ए, नरेसुआ, जे जे दीसे नर बहु दुक्ख । निशा-आहार तणा फल ए, नरेसुआ, कहिंय न पावे सुक्ख ॥६३ इम जाणी जे परिहरे ए, नरेसुआ, रयणी तणों आहार । मनवांछित सुखते लहें ए, नरेसुआ, पुण्य फलें गुणधार ॥६४ सुख संयोग सौभागिया ए, नरेसुआ, बुद्धि ऋद्धि सन्तान। सुर नर वर पदवी लही ए, नरेसुआ, अनुक्रमे मोक्ष निदान ॥६५ चित्रकूट नयर भलो ए, नरेसुआ, जागरी नामें चंडाल। निशा भोजननि फल एं, नरेसुआ, विस्मय पामी विशाल ॥६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org