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श्रावकाचार-संग्रह श्रावक व्रत तरुतणां ए, नरेसुआ, पीठ बंध गुणमूल । यत्न करो घणुं ते तणों ए, नरेसुआ, दृढपणे अनुकूल ॥३१ सप्त व्यसनं जे परिहरे ए, नरेसुआ, धरे जे मूलगुण अष्ट । प्रथम प्रतिमा ते सहित ए, नरेसुआ, दर्शन नामी अभीष्ट ॥३२ जल गालण भेद सुनो ए, नरेसुआ, हृदय थई सावधान । जे जाण्या विण जीवने ए, नरेसुआ, हए ते बह परिज्यान ||३३ गाढो नूतन चीरज ए, नरेसुआ, दीर्घ अंगुल छत्तीस । दुगुणो चीर ते कीजिए ए, नरेसुआ, विस्तारे चौवीस ॥३४ विहु-विहु घड़ी इ जल गालिए, नरेसुआ, दिन पर ते विहु-वार । कोमल परिणाम कीजिए ए, नरेसुआ, जीव जल गुणधार ॥३५ जल-बिन्दु एक मांहि ए, नरेसुआ, असंख्यात जीव होय । भमर जेम बड़ो जो थाइ ए, नरेसुआ, त्रैलोक्य न वि माइ सोय ॥३६ अणगल नीर किम पीजिइ ए, नरेसुआ, जीव तणों होइ भक्ष । त्रस भक्ष जो कीजिए, नरेसुआ, तो किम मूल गुण दक्ष ॥३७ काचो नीर न पीजिइ ए, नरेसुआ, पाणी गल्यो तत काल । पवित्र भाजने ते घालिइ ए, नरेसुआ, मांहे न रहे पंक-सेवाल ॥३८ बेहडा कसेलो कुछठ ए, नरेसुआ चूर्ण करी पवित्र । अधिको ऊनो न वि मूकिइ ए, नरेसुआ, निरति करीइ विचित्र ॥३९ वर्ण रुडो जब देखिइ ए, नरेसुआ, तब ग्राहीये ते नीर । प्रासुक जल जले करो ए, नरेसुआ, प्रमाद छांडी सरीर ।।४० गल्या जल प्रासुक पछे ए, नरेसुआ, प्रासुक पहर ते दोय । अतिउष्णं आठ पहर लगे ए, नरेसुआ, पच्छे अ सम्मूच्छिम होय ।।४१ अनगल स्नान न कीजिइ ए, नरेसुआ, न वि धोइ ए ते वस्त्र ! साबु जो जल माहे पडे ए, नरेसुआ जलचर ने शस्त्र ॥४२ इम जाणि जल-जत्न करो ए, नरेसुआ, जीव-जत्ने दया होय । जिहाँ दा तिहाँ धर्मज ए, नरेसुआ, धर्म निहाँ सुख जोय ॥४३ धर्मे सुर नर वर पद ए, नरेसुआ, धर्मे मनवांछित सुक्ख । ऋद्धि वृद्धि बुद्धि घणी ए, नरेसुआ, धर्मे अनुक्रमे मोक्ष ॥४४ पाणी प्रमादे गाले नहीं ए, नरेसुआ, जत्न न करे जे सार । ते पापी अज्ञानि जीव ए, नरेसुआ, भमें ते भवहिं मझार ॥४५ पाप फलें नरक पशगति ए. नरेसआ. नर नारी निरधार। हीन दीन दलिद्री देखिए, नरेसुआ, पापे पर-वश गवार ॥४६ बहिरा बाडा बोबडा ए, नरेसुआ, खंज पग मुका जेह । अधम विष वियोगीआ ए, नरेसुआ पाप तणां फल एह ॥४७ इम जाणी सावधान हो ए, नरेसुआ जो सुख वांछो देह । तो जल जल सदा करो ए, नरेसुआ, धणुं सुं कहिए तेह् ॥४८
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