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पदम-कृतश्रावकाचार
सप्त व्यसन-सम सात नरक ए, नरेसुबा, न वि जाणे हेयाहेय। जुजूआ सेवे जेह एके विसनें करी नरेसुबा, दुख देखे बहु तेह ॥१३ एक व्यसनिजो नरक हुए नरेसुबा, सातें से जे सात। तेहना दुःखनों पार नहीं ए. नरेसुआ, किम कही जाय ते बात ।।१४ उत्तम वंशे जे उपजी ए, नरेसुआ, व्यसन सेने जे मूढ । लाधू चिन्तामणि जे त्यजी ए, मरेसुबा, नीच गति पामें ते प्रौढ़ ॥१५ इम जाणिय विजन तुम्हो ए, नरेसुआ, जो सुख वांछो देह । तो बिसन सहु परिहरो ए, नरेसुआ, घण सू कहिए वलि तेह ॥१६ अष्टमूल गुण हवे सुणो ए, नरेसुआ, मद्य, मांस मधु त्याग। ऊंबर बड़ कठुबरी ए, नरेसुआ, पीपल पीपरी कुराग ॥१७ मद्य माहे जीव बहु मरें ए, नरेसुबा, मद्य पीधे नहीं सान । दुःख दुर्गति होइ ए, नरेसुआ, पापी मद्य कुपान ॥१८ एक बिन्दु मद्य तणा ए, नरेसुआ, थाह जो जीव विस्तार । त्रैलोक्य मांहि मावे नहीं ए, नरेसुआ, किम कह्यो जाइ पाप विस्तार ॥१९ अथाणा संधाणा त्यजो ए, नरेसुआ, अनन्त जीव रस काय । कुली निगोद बहु ऊपजे ए, नरेसुथा, शास्त्र कही, ते किम खाय ॥२० दिन विहुं पूठे दही छांछ ए, नरेसुबा, वासी न स्वाद-रहित । आछण फूली वस्तु त्यजो ए, नरेसुआ, मद्य-नेम-सहित ॥२१ मांस-भक्षण दूरे त्यजो ए, नरेसुबा, मांस मरे बहु जीव । जिह्वा लंपट पापी मा ए, नरेसुबा, अधोगति पाडे ते रीय ॥२२ चर्मेघाल्या घत तेल ए. नरेसआ. जल हींग सरस वस्त। सरसव शुल्वां धान त्यजो ए, नरेसुबा, दोषते मांस समस्त ॥२३ चर्म-जोगे जल रस थकी ए, नरेसुआ, उपजें जीबते सूक्ष्म । सूर्यकान्त चन्द्रकान्त मणि ए, नरेसुआ, अग्नि जल झरे तेम ॥२४ चर्म पात्रे जल त्यजो ए, नरेसुबा, शौच कर्म नहिं योग्य । तो स्नान तिणे किम कीजिए, नरेसुआ, किम पीजे जल अभोग्य ॥२५ जीव इंड थी उपनो ए, नरेसुबा, म्लेच्छ ते चर्वित जाण । मधु भक्षे सूग ऊपजे ए. नरेसुआ, नीपजे बहु जीव हाणि ॥२६ सात गाम वाले जेतलु ए, नरेसुबा, तेतलं पाप होइ ताम।। मधु बिन्दु एक भक्षण करे, नरेसुआ, लोक-प्रसिद्ध एक भाष ॥२७ शरीर धाय व्रण आदि ए, नरेसुबा, नेत्र करण अयोग्य । औषध काजे मधु त्यजो ए, नरेसुआ, कीजे नहीं ते प्रयोग ॥२८ पत्र पुष्प शाका त्यजो ए, नरेसुआ, विहु घडी पूढे नवनीत । काचु दूध नीर त्यजो ए, नरेसुआ, भागी नेम-सहित ॥२९ काचा गोरस-मिश्रित ए, नरेसुआ, त्यजो ते द्विदल अन्न। वरसाले अन्न ढल्यां ना ए. नरेसुबा त्यजो ते जिन मांसी मन्न ॥३१
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