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पावकाचार-संग्रह शासन दोष जे कचरे, जिन-महिमा करे लोप । ते मूढ मिथ्यात्वीया, हिंडोलड़ा रे, भव-भव लहे कष्ट कूप ॥६६ जिणे जिणे जीवे कीयो, माहातम जिन शासन । संसार-दुःख दूरे करी, ते पाम्या मोक्ष भविजन हिंडोलड़ा रे ॥६७
वस्तु छन्द प्रभावना अंग, प्रभावना अंग घारो भवियण अनुदिन । वज्रकुमार मुनिश्वर कीयो, शासन विलास तणों मनोहर । सुर नर सुख ते भोग वें अनुक्रमें पामें शिव निर्भर ।। आठों अंग करि अति बलो, पालें जे समकित सार । जिन-सेवक पदमो कहे, धन धान्य ते अवतार ॥६८
__-अथ ढाल नरेसुआनी समकित गुण इम वर्णवीए, नरेसुआ, प्रतिमा सुणों हवे भेद। दर्शन नामें निर्मली ए, नरेसुआ, जिम होय कर्म-तणों छेद ॥१ सात विसन दूरे टाली ए, नरेसुआ, पालीये अष्ट मूल गुण । श्रावक सर्वक्रिया माहीए, नरेसुआ, दर्शन धारो निपुण ॥२ द्यूत मांस सुरा पान ए, नरेसुआ, वेश्या संग आखेट । चोरी पर नारी सेवा ए, नरेसुआ, सप्त विसन पाप मूल ॥३ जूआ खेलें योगी थया ए, नरेसुआ, पांडव हुआ राज्य-म्रष्ट । द्यूत व्यसन दुख देइ एं, नरेसुआ, प्रथम नरकनें कष्ट ॥४ मांस-लोलुयी पाप करे ए, नरेसुआ, जीव तणां संधार । वक राजा ए बापडो ए, नरेसुआ, दुर्गति सहे दुख भार ॥५ मद्यपान मति विहवल ए, नरेसुआ, न वि जाणे हेया हेय । नयर सुं यादव क्षय गयो ए, नरेसुआ, मित पामी मद्य एह ॥६ वेश्या संगे पाप उपजे ए, नरेसुआ, अर्थ-हानि, जाय लाज। चारुदत्त चंचल पणे ए, नरेसुआ, हार्यो निजघर-काज ॥७ आहेंडे आरम्भ घणो ए, नरेसुआ, पशु अतणों विणास । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ए. नरेसुआ, सातमी नरक-निवास ।।८ चोरी व्यसन पातक घणा ए, नरेसुआ, विह लहे पर बंध। शिवभूति तापस आदि ए, नरेसुआ, पाम्यों दुःख तणो कंध ॥९ परनारी दूरे तजो ए, नरेसुआ, तेहथी होइ महापाप । रावण धवल शोष्ठि ए, नरेसुआ, सही ते नरक-संताप ॥१० धूत व्यसन पहिलो नरक ए, नरेसुआ, मांस बोजो श्वभ्र जाण। मद्यपान तोजी नरक ए, नरेसुआ, वेश्या-सेवे चौथी जाण ॥११ आहेडे पांचमी नरक ए, नरेसुआ, चोरी कीधे छट्ठी जाय । पर नारीइ सातमी नरक ए, नरेसुआ, पंचविध दुःखते थाय ॥१२
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