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पदम-कृत श्रावकाचार हरषि हिंडोले हिचली, वसन्त क्रीडा चैत्र मास । प्रतिगन्ध भूपें दीठी, हिडोलड़ा रे, उपनो राग-भिलाष me भूपे मंत्री मोकल्यो, कन्या जांची निजकाज। बुद्ध कहे भूपति सुणो, हिंडोलड़ा रे, जो धर्म लेय बुद्धराज ॥४९ तो कन्या तुम्हनें देऊं, न हीं तो करो संतोष । मूढ भूपे बोल मानीयो, हिंडोलड़ा रे, अर्थी न देखे दोष ॥५० चिन्तामणि तिणे परिहरी, राय लीयो तब कांच। सत्य धर्म जिन-भाषित, हिंडोलड़ा रे, किंहा मन बौद्ध असांच ॥५१ महोच्छव करि कन्या वरी, राय गयो निज घरि सार । पट्टराणी पद थापियो, हिंडोलड़ा रे, आपी स्त्री-सिणगार ॥५२ अचिला राणी भूप तणी, सदा करे जिन धर्म । नन्दीश्वर अष्ट दिन, हिंडोलड़ा रे, रथ जात्रा करे परम ॥५३ आषाढ़ कार्तिक फागुण, वरस व्रते त्रण वार । रथ ऊपर जिन बिम्ब धरि, हिंडोलड़ा रे, महोच्छच करे गुणधार ॥५४ अचिला तणों रथ देखी ने, बुद्धि राणी करे कोप। प्रथम रथ चाले मुझ तणों, हिंडोलड़ा रे, देव छै सारी बुद्धदेव ।।५५ अचिला कहे पहिलो मुझ तणुं, जो चाले रथ सार । तब ते करूं हुं पारणों, हिंडोलड़ा रे, नहीं तो नियम-आहार ॥५६ क्षत्रिय गुफा जाइ वंदिया, मुनिवर श्री सोमदत्त । अनशन मांगे निर्मलो, हिंडोलड़ा रे, मुनि पूछ्यो सयल वृत्तान्त ॥५७ तिणि अवसरि गुरु वन्दिवा, याव्या दिवाकर देव।। वजकुमार भणे, खग सुणो, हिंडोलड़ा रे, अचिला सहाय करो देव ।।५८ तब खेचर विद्याबलें, बुद्धि-रथ कीयो ध्वंस।। मिथ्याती मान चूरीयो, हिंडोलड़ा रे, तिमिर उगे जिम हंस ॥५९ रथ चाल्यो अचिला तणों, तब हुओं जय जयकार। जिन बिम्ब रथ आगे हुओ, हिंडोलड़ा रे, गीत बाजे अपार ॥६. जिन शासन प्रभावना, अचिला जस विस्तार । राय राणी ते जैन हुआ, हिंडोलड़ा रे जिन धर्म करे भवतार ॥६१ प्रत्यक्ष महिमा देखी ने, लोक करे जिन धर्म। . मिथ्यात-विष सहु परिहरी, हिंडोलड़ा रे, निश्चय आणी मत परम ॥६२ वजकुमार ते इणी परे, कीयो प्रभावना अंग। सहाय कीयो अचिला तणों, हिंडोलड़ा रे दिवाकर देव प्रसंग ॥६३ निज शक्ति प्रगट करी, शासन करे जे उद्धार । सुर नर वर पदवी लही, हिंडोलड़ा रे, ते पामें भव-पार ॥६४ जिणे किणे उपाय करी, शासन करी प्रभाव! समकित अंग सुद्धों धर्यो, हिंडोलड़ा रे, ते होई भवोदकि-पार ॥६५
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