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श्रावकाचार-संग्रह विद्या बले ते चालीयो, जुद्ध करवा तिणि काज। काको जीति राज लीयो, हिंडोलड़ा रे, तात थापु निज राज ॥३० राय राणी सुं रंगे रहे, बहु अर सहुँ परिवार । जया राणी इच्छा करे, हिंडोलड़ा रे, देखी ते वज्रकुमार ॥३१ ए छतां मुझ पुत्रनें, राज तणुनहीं भार। इम जाणिय रोषज धरे, हिंडोलड़ा रे, धिग् धिग् लोभ असार ।।३२ कवण पुत्र ए जन्मीयो, कहि ने करे संताप । कुमर सुणी विस्मय हुओ, हिंडोलड़ा रे, पूछयो ते निज बाप ॥३३ तात मुझ सांची कहो, कहि तणों पुत्र संत । नहिं तो हुँ जीमूं नहीं, हिंडोलड़ा रे, तातें कहो रे वृत्तान्त ।।३४ सयल संबंध सांभली, चाल्यो वज्रकुमार। निज तात गुरु वंदिवा, हिंडोलड़ा रे, साथे खग-परिवार ॥३५ मथुरा नगरी आवीया, क्षत्रिय गुफा मझार । सोमदत्त गुरु वंदीया, हिंडोलड़ा रे, बैठा तिहां वज्रकुमार ॥३६ धर्म कथा रस सांमली, पूछ्यो निज वृत्तान्त । सकल सम्बन्ध ते गुरु कयो, हिंडोलड़ा रे, जनम आदि पर्यन्त ॥३७ सह गुरु कहे वच्छ तमें लेउ ते संयम-भार । गुरु वचनें संग छांडियो, हिंडोलड़ा रे, दीक्षा लीधी वज्रकुमार ॥३८ अवर सजन बहु घरि गया, मुनि करे शास्त्र-अभ्यास । सम दमे संजम आचरे. हिंडोलड़ा रे, तप जप करे गुरु पास ॥३९ मथुरा नयरी तणों धणी, पूत गन्ध भूप नाम । अचिणा (उर्मिला) राणी तस तणी, हिंडोलड़ा रे, दान पूजा गुण ग्राम ॥४० सागर दत्त श्रेष्ठी वसे, समुद्र दत्ता नारी नाम । दरिद्रा नामें पुत्री हवी, हिंडोलड़ा रे, दारिद्र दुख तणो ठाम ॥४१ पुत्री जब उरे अपनी, मरण पाम्यो तप बाप । धनसूकुटुम्ब क्षय गयो, हिंडोलड़ा रे, धिग धिग कर्म कुपाप ॥४२ दुःख देखीतें वृद्धि थई, कुत्सितई लेवे आहार । क्षुधा पीड़ी पर धरि भमे, हिंडोलड़ा रे, दीन दारिद्र कुमारि ॥४३ दोय मुनीश्वर संचर्या, लघु मुनि कहे तिणी वार । ए वर की कष्टे जीवे, हिंडोलड़ा रे, धिग धिग पाप अपार ॥४४ ज्येष्ठ मनि तब बोलियो, वच्छ सुणों मुझ बात। पट्टराणी होसे भूपतणी, हिंडोलड़ा रे, पामिसे ए बहु ख्यात ॥४५ भिक्षा काजे वन्नक भमें धर्मश्री तस नाम । मुनि-वयण निश्चय करी, हिंडोलडा रे, ते लेइ गयो निज ठाम ॥४६ अन्न पान मिष्ट देई, पुष्टि पमाडी ते बाल। वस्त्र आभूषण आपीया, हिंडोलड़ा रे, यौवन थई गुणमाल ।।४७
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