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________________ पदम-कृत श्रावकाचार आम्रतरु तले रहिया, सुमित्र सूरी योगवन्त । ऋद्धि प्रभाव तरु फल्यो, हिडोलडा रे, निज मन वांछे द्विज सन्त ॥ १२ आम्रफल लेइ मोकल्या, सेवक साथै निजगेह | आ आस्वादी ते कामिनी, हिंडोलडा रे, संतोष पामी तब देह ॥१३ सोमदत्त वैराग हुआ, अथिर जाण्यो संसार ! संग छांडी गुरु वीनवी, हिडोलड़ा रे, लीघू ते संयम भार ॥१४ ध्यान अध्ययन तप आचरे, धर्मो आतापनयोग | नाभिगिरि मस्तक रूमडो, हिडोलडा रे, कायोत्सर्ग लीयो ध्यान भोग ॥१५ जज्ञदत्ताइ पुत्र जाइनुं संबंध कीउ गुरु भ्रांत । आदी मुनिपद ऊपरें, हिंडोलडा रे, बाल मूकी कहे बात ॥१६ ए पुत्र कंत तुम्ह तणुं, माहरे नथी कांइ काज । रोस धरी धरि ते गई, हिंडोलडा रे, नारी निर्गुण नहीं लाज ॥१७ तिणें समय रूपाचली अमरावती पुरी ईश । दिवाकर देव पुरन्दर, हिंडोलडा रे, सहोदर घर विद्वेष ॥ १८ पुरन्दरा विद्याबले, जुद्ध कीये ज्येष्ठ भ्राति साथ । नयर मूकी नीसरी गयो, हिंडोलडा रे, दिवाकर दिवाखग नाथ ॥१९ यात्रा करतो आवीयो, मुनि भेंटया सोमदत्त, बालक देखि अचंभियो, हिंडोलडा रे, वज्र कुमार नाम दीयो सत्य ॥ २० विद्याधर इम वोलीयो, निजनारी सुं सार । ए बालक, तुम्हें लेयो, हिंडोलडा रे, रूप कला गुणधार ।। २१ कनक नयर ते आवीयो, विमल वाहन करे राज । ते सालो ते खगतणों, हिंडोलडा रे, सुखे रहि करे राज ॥२२ अनुक्रमें पुत्र मोटो थयो, विद्या साधी तिण वार । रूप कला यौवन भरे, हिंडोलडा रे, सोहें ते वज्रकुमार ॥२३ गरुड वेग विद्याधर, गर्गावती तस नार । बस तणी कूंखे उपनी, हिंडोलडा रे, पवन वेग कुमार ॥ ३४ ह्रीमन्त भूधर, मस्तके, विद्या साधी ते बाल । प्रज्ञप्ती नामें भली, हिंडोलड़ा रे, मंत्र जपे सकुमाल ॥२५ बदरी कंटक वाइ पयुं, कन्या नयन मंझार । चित्त चले नेत्र गले, हिंडोलड़ा रे, पांवे नहीं नमोकार ॥२६ रमतो कुमार ते आवीयो, ते कन्या तिणि पास । विज्ञानी शल्य जाणीउ, हिंडोलडा रे, कंटक दीयो निकास ॥२७ कन्या ध्यान जब लागीयो, विद्या हुई तस सिद्ध । कन्या कहे कुमार धन्य, हिंडोलड़ा रे, तुम्ह पसाय विद्या रिद्ध ॥२८ कन्या कहे अवर वरूं नहीं, तुं मुझ हुने भरतार | भाव जाणी महोच्छव करी, हिंडोलड़ा रे, कन्या वरी वज्रकुमार ॥२९ For Private & Personal Use Only Jain Education International ३७ www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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