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पदम-कृत श्रावकाचार
आवता देखी मुनि अकाल, चतुर चेलणा परीक्षा करे हेलि। वीतराग सराग, आसनं, मुनि ने धर्या हेलि ॥७५ वैरागें आसन मनि बैठा, चलणा आयी नमोस्त करे हेलि। गुरु देइ धर्म वृद्धि, वारिषेण बली उच्चरे हेलि ॥७६ चेलणा सुणों मुझ बात, अन्तःपुर बाणों मुझ तणों हेलि । धरीय सयल सिणगार, नारि बत्रीसे रूप घणों हेलि ।।७७ आवी ते सहु बाल, प्रणाम करी आगलि रही हेलि । देखाडी पुष्पडाल, विशाल वाणी गुरु कहे हेलि ॥७८ मित्र सुणो मुझ बात, युवराज तम्हें भोगवो हेलि। सहित सकल परिवार, सार सौख्य तमें जोगवो हेलि ॥७९ तब लाज्यो पुष्पडाल, एह वी रिद्धि गुरु परिहरी हेलि । अपछर-सरिखी एह वी नारि, सोय संपदा न वि अनुसरी हेलि ॥८० अल्प रिद्धि मुझ होइ, एक नारी नेत्रकाणी हेलि । तेह साथे हूँ धरू मोह, धिग ते रागी प्राणीयो हेलि ॥८१ हूँ अज्ञानी मूढ, प्रौढ़ बाला स्नेह जडो ले हेलि । दुःख देखे अपार, झूरि-भूरि घणूं रडोले हेलि ॥८२ तब ते कहे पुष्पडाल, तू धन धन्य गुरु निर्मलो हेलि। बार वरस में कीयो कष्ट, शल्य-सहित तप कसमलूं हेलि ॥८३ तब गुरु कहे सुणो वच्छ, दुःख जणित-मोह भजू हेलि। करम तणें विपाक, भाव विषम जीव ऊपजे हेलि ॥८४ जिन आगम अनुसार, प्रायश्चित्त गुरु आपीयो हेलि। विनय भक्ति-सहित व्रत शुद्धि मन थापीयो हेलि ।।८५ आवी बनहिं मझार, तप जप करे ते निर्मलो हेलि । संस्थितिकरण अंगसार, वारिषेण कीउ उज्जलो हेलि ॥८६
दोहा पुष्पडाल व्रत थापिओ, वारिषेण मुनिराय : धर्म-स्थितिकरण तेणें को धन्य दे गुणराय ॥१ नागश्री नारी निर्मली, प्रति बोधी निज कंत । व्रत स्थितिकरण तिणे कीयो, पाल्यो धर्म महंत ॥२ तेह कथा तुमें जाणज्यो, जंबु कुमार चरित्र । भवदेव भावदेव तणी, विस्तार-सहित पवित्र ॥३
धर्म स्थितिकरण जेणें कियों, साहाय करी गुण धार । सुर नर सुख ते भोगवे, ते पाम्या भव-पार ॥४
अथ वात्सल्य अंग । अथ ढाल वाच्छल्ल अंग हवे कहीइ, साधर्मी तणों विनय वहीइ, लहीइ शासन धर्म ॥१ जती व्रती साधर्मी जेह, तेह साथे धरो शुभ स्नेह, जिम प्रीति गोवच्छ तेह ॥२ साधर्मी तूं म करो रोस, कहीनें न वि दीजे दोस, संतोष धरो सहुं साथे ॥३ वाच्छल्ल अंग केणि पाल्यो जिनशासन माहे आल्यो, विष्णु वृत्तान्त सांभल्यो॥४
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