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श्रावकाचार-संग्रह
सहज क्षमावी स्वजन्न, सुरदेव गुरु वंदिया हेलि । छांडी परिग्रह भार, संजम लेइ आनंदिया हेलि ॥५७ वारिषेण हुआ मुनीश, तप जप करे ते ऊजलो हेलि । ध्यान अध्ययन अभ्यास, ग्रास प्रासुक ले निर्मलो हेलि ॥५८ पलासकूट एंह ग्राम, श्रेणिक मंत्री अग्निमित्र हेलिः । तेह पुत्र पुष्पडाल, सोमिल्ला नारी तणों पती हेलि ॥५९ वारिषेण एक बार, आव्यो पुष्पडाल घरे हेलि । प्रासु दीयो तेणें आहार, सोल गुण प्रकट करि हेलि ॥६० मुनि वोलावा ते जाय, बालमित्र मुनिवर केडे हेलि । जल-कुण्डी लेइ हाथ, नगर बाहर चाले जिम हेलि ॥६१ सरोवर देखाडे मित्र, आगे क्रीडा करता इहां हेलि । वली देखाडे अंब वृक्ष, सुख रमता आपणें इहां हेलि ॥६२ पाछो बलवा काज, भपड्यो मनोरथ करे हेलि । पुष्पडाल ते विप्र, सोमिल्ला नारी सूं स्नेह घरे हेलि ॥६३ मुनि चाले समभाव, न वि तेडि न वि रहो करे हेलि । आव्या निज गुरु पासि, नमोस्तु करी आगल रहे हेलि ॥६४ परसंस्थो ते पुष्पडाल, बाल मित्र गुण स्नेह घरे हेलि । दीक्षा देवारी गुरुपासि, उल्हास विना लाजि करी हेलि ॥६५ लाज काजि भय भाव धरे, धर्म काज कीजे सदा हेलि । पुष्पडाल तिणि वार, भार संजम लीयो हेलि ॥६६ तप जप करे मुनीश, ध्यान ज्ञान अभ्यास करे हेलि । द्रव्य दीक्षा पाले चंग, अन्तरंग सोमिल्ला साथे घरे हेलि ॥६७ बार वरस पूरा होइ, वारिषेण गुरु वीनव्या हेलि । सद्गुरु आज्ञा दीघ, तीर्थं जात्रा करते परठव्या हेलि ॥६८ वारिषेण पुष्पडाल, दोय मुनि विहार कर्म करे हेलि । आव्या समवसरण श्रीवीर, वंद्या भाव धरी हेलि ॥६९ धन धन्य तुम जिन स्वामी, काम बालापणें ते जीतियो हेलि । टाली करम सबल, केवल ज्ञार्ने गुण देखीयो हेलि ॥७० स्तवी बंदी वर्धमान, पुण्य उपार्जी वारिषेण हेलि ॥ बैठा मुनिवर कोष्ठ, धरम सुणें तत्क्षण हेलि ॥७१ इन्द्र- पूजित पद-पद्म, गन्धर्व देव स्तवे घणुं हेलि । गीत नृत्य वाजित्र, सराग शब्द मुनि सुष्यां हेलि ॥७२ तब चिते पुष्पडाल, बाला - विरह दुःख उपनों हेलि । त्यजबा संजम भार, विकार मुनि मनि नीपनों हेलि ॥७३ विचक्षण वारिषेण, निज मित्र मन जाणीयो हेलि । ल्याव्यो नयर मझार, चेलणा राणी घरि आणीयो हेलि ॥७४
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