________________
पदम-कृत श्रावकाचार
सोरठ देश मझार, पाटलीपुर नयर धणी हेलि।
जसोधर तस राय, सुषमा राणी तेह वणी हेलि ॥३ तस बहु कूखे पुत्र, सुवीर नामें उपज्यो हेलि । कर्म तणे प्रभाव सप्त विसम ते नीपज्यो हेलि ॥४
उत्तम कुल तस जात, मात तात तस रूवडा हेलि। कहिने न दीजे दोष, पाप कर्मे जीव बहु नडा हेलि ॥५ विसन वाहायो रे कुमार, राजरिद्धि मूको नीसर्यों हेलि। सुवीर हुओ ते चोर अवर चोरें बह परिवयों हेलि ॥६ गौडदेश इह जाण, ताम्रलिप्त नयरी धणी हेलि । जिनेन्द्रभक्त नामे श्रेष्ठि, देव शास्त्र गुरु भक्ति घणी हेलि ॥७ सात क्षेत्र वेवे वित्त, जिन-भवन जिन-विम्ब तणां हेलि। चतुविधि संधनें दान, ज्ञान विस्तारे जिन भण्यां हेलि ॥८ जिन गेह सातमी भूमि, प्रासाद कोयो श्री जिन तणो हेलि । श्री पार्श्व जिन प्रतिमा सुण्यो जस ते धणो हेलि ॥९ प्रतिमा ऊपर त्रण छत्र, दंड वैडूर्य रत्न धर्यो हेलि। अमोलिक मणि तेजवन्त, संत सदा रक्षा करे हेलि ॥१० तेह ज रत्न प्रभाव, पर देशे जस विस्तर्यो हेलि। सांचो जे गुणवन्त, संत महिमा ले प्रसरे हेलि ॥११ सुवीर सुणी ते बात, निज साथी प्रति कहे ते हेलि। जेह ल्यावे ए रत्न, रत्न सहित जस विस्तरे हेलि ॥१२ सूर्पक कहे चोर, रत्न आए॒ इन्द्र सिर तणुं हेलि । एह मणि कुण बात, क्षात बोलुं छै किसु घणुं हेलि ॥१३ आदेश लेय ते चोर, गूढ ब्रह्म नेष कीयो हेलि। कोपीन घरी ऊ खंड वस्त्र, जल पात्र निजकर लीयो हेलि ॥१४ तप करे बहु कष्ट, क्षीण अंग कीयो घणुं हेलि। सम दम बहु धरि नेम, जस विस्तार्यों तेणे बापणों हेलि ॥१५ देश नयर द्रोण ग्राम, विहार करतो ते आवीयो हेलि। ताम्रलिप्त पुर पास, गुण श्रेष्ठि भावीयो हेलि ॥१६ महिमा करो तस प्रौढ़, साह निज घर आणीयो हेलि। जिहां छै जिन रत्न बिम्ब, जात्रा करी गुण बखाणीयो हेलि ॥१७ रत्न देखी ते अमोल, ब्रह्म संतोष ते पामीयो हेलि। जिन सोनी देखे हेम, हृदय हरखे तेम पामीयो हेलि ॥१८ धूरत जीव बहु चिह्न, डंभपणो कोई न वि लहे हेलि। गुणी जाणे गुणवंत, साधर्मी भक्ति श्रेष्ठी वहे हेलि ।।१९ स्वामी रहो मुझ गेह, यत्न करो प्रतिमा तणं हेलि। बाल इच्छा विण ब्रह्म, कूड करे छल जोइ घj हेलि ॥२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org