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श्रावकाचार संग्रह
तब श्रेष्ठी कृपावंत, विद्या उपदेश देइ संत । एक मना सांभल तूं सोमदत्त ए, सही ए ॥ २५ कृष्ण चतुर्दशी रात्रें, वे उपवास करी पवित्र । गात्र स्मसान वडतरु पूर्व शाखि ए. सही ए ।। २६ दर्भ तणो शीको रूबड़ो अठोत्तर सौसर जोडु । भूतली ऊर्ध्व मुखि खड़ग तीक्ष्ण ए, सही ए ॥ २७ शी वैसी निर्भयपणे, अपराजित मंत्र गुणी । एकेकी सर छेदे शीकातणी ए, सही ए ॥ २८ जब मंत्र पूरण थाय, तब आकाश विद्या आय | मनवांछित कारज करे घणुं ए, सही ए ॥ २९ श्रेष्ठि उपदेश सांभली, सोमदत्त पूगीडली । बिद्या साधन ते लागो बुध बली ए, सही ए, ॥३० मंत्र जपि एक सर कापी, खड़ग देखी मन भय व्यापी । संशय हवो तब श्रेष्ठि ने ए, सही ए ॥ ३१
शस्त्र ऊपर जो होसे पात, तो निश्चय होइ धात | इम जाणी ते चढ़े ऊतरे वली वली ए. सही ए ॥ ३२ अंजन चोर तिण अवसरे, आव्यो अंजनसुंदरि घरे । सन्मुख न वि दीठी ते कामिनी ए, सही ए ॥ ३३ चोर पूछे किम द्यामणी, गणिका कहे सुणों धणी । राणी तणों हार द्यो तम्हो आणी ए, सही ए ॥३४
राजा ते प्रजापाल, तस राणी कनकमाल । ते हार विना किसू जीविए ए, सही ए ॥ ३५
अंजन चाल्यो अंजन बले, हार हरयो ते छोर बले । अदृश्य रूप ते लेइ नीसर्यो ए सही ए ॥३६ हार तेजे उद्योतकीयो, कोटवाल वेगें लीयो । हार मूकी अंजन नीसरी गयो ए, सही ए ॥ ३७ सोमदत्त कन्हें आवीयो प्रौढ, किस आक्षेप करै छे मूढ । श्रेष्ठी सम्बन्ध तेणें सहुँ कह्यो ए, सही ए ॥ ३८
अलग रहे ए हवुं कही, शीके वेसी ते सर ग्रही । एकवार ते सघली शर छेदी ए, सही ए ॥ ३९ श्रेष्ठी वयण करी प्रमाण, जब आवे भूपति मूं जाणि । तब आकाश देवें झेलीयो ए, सही ए ॥४० निःशंक अंग प्रगट कर्यो, विमान वेसंता संचर्यो । जिहां श्रेष्णी छे तिहां जात्रा गयो ए, सही ए ॥ ४१
अकृत्रिम जिन भेटीया, पाप संकट वे छुटीया । चारण मुनि गंधा श्रेष्ठी पासे ए, सही ए ॥४२ तब श्रेष्ठी अचंभीयो, अंजन देखी मन क्षोभीयो । चोर सम्बन्ध कही थोभीयो ए, सही ए ॥४३ मुनिवर दीयो उपदेश, धर्मं लीडं ते यति ईश । सीस नामी अंजन एम वीनवी ए, सही ए ॥४४ स्वामी तम्हो कृपा करो, भवसायरतें उतारो। संजम देओ मुझ देव दुर्लभ ए, सही ए ॥४५ अल्प आयु ते जाणीउ, आसन्नभव्य मन आणीउ । श्रेष्ठे अंजन गुण बखाणीयो ए, सही ए ॥४६ दीक्षा दीधी मुनिवर तणी, सह गुरु प्रशंसा करे घणी । तप जप संजम अंजन करी ए, सही ए ॥४७ ध्यान बले कर्म निर्जरी, केवल ज्ञान प्रगट करी ।
कैलाशगिरि आवी मुकति श्री वरी ए, सही ए ॥ ४८
धन्य धन्य मुनि अंजन, सिद्ध हवो करम भंजन । सुरे आवी निर्वाण पूजा करी ए, सही ए ॥ ४९
दोहा
निःशंकित अंग ऊजलो, पाल्यो अंजन चोर । श्रेष्ठी वयण निश्चय करी, परिहरि संशय घोर ॥१ निश्चय विणा दर्शण नहीं, निश्चय विणा कोई नही सिद्धि । निश्चय विणा शिव सुख नहीं, निश्चय विणा नहि बुद्धि ऋद्धि ॥२
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