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पदम-कृत श्रीवकाचार
जय डाल सहीनी
निःशंकित पहिलो निर्मलो, नि:कांक्षित दूजो भलो । निर्विचिकित्सा तीजो ऊजलो, सही ए ॥१ अमूढ अंग चौथो कही, उपगूहन पंचमो लही । संस्थितिकरण अंग छट्टो सही ए ॥२ वात्सल्य अंग सातमो, प्रभावना अंग आठमो । आठ अंगे दर्शन अति बली ए. सही ए ॥३ निःशंकित गुण किणि पाल्यो, जिनशासन तें अजु आल्युं । अंजना चोर कथा हवे सांभलो ए, सही. ए ॥४
भरत क्षेत्र एह जाणीए, मगध देश मण आणी ए । राजगृही नयरी वखाणिइ ए सही ए ॥५ जिनदत्त श्रेष्ठी नाम, साधे ते धर्मं अर्थ काम। दान पूजा तप जप ते गुण ग्राम ए, सही ए ॥ ६ चतुर्दशी पोसह कही, समसान रह्यो काउसग्ग धरी । घर सावद्ययोग सब परिहरी ए, सही ए ॥७ आकाश देव युग आवीया, अमितप्रभ पहिलो भावीया । विद्युत्प्रभ दूजो सोहावी उ ए, सही ए ॥८ प्रथम सुर सम्यग्दृष्टी, दूजो मिथ्यादृष्टि । दोय मित्र पहिला नरभब तथा ए, सही ए ॥ ९ विचार करी ते मांहो माहे, घर्मंतणो परीक्षा चाही । यमदग्नि पासे आवीया ए, सही ए ॥१०
चिडो चिडी रूप लीयो, तापस कान्ह मालो कीयो । चिडी मूकी निज काज चिडो चालीयो एं, सही ए ॥११ चिडी कहे कही कहीये आवसो, न वि आवो तो सम करो । आवृं नहीं तो कुतापस पापे लीजिए, सही ए ॥१२ तदि तापस मन कोपियो, कुच मालो करि लोपियो । तब पंखी उड़ि आकाशे गया ए, सही ए ॥१३
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क्षमा भ्रष्ट तापस देखी, कुमत धर्म तेणे उ वेखी । चालो मित्र गुरु जोउं तुम तणां ए, सही ए ॥१४
२१
देवे दीठो जिनदत्त श्रेष्ठी, ध्यावे निज मन परमेष्ठी । निःकम्प मेरु जिम, ऊभो रह्यो ए, सही ए ॥१५ जैन देव ते इम कहे; सद्-गुरु वाणो तत्त जोकं । जिन शासन श्रावक परीक्षा करो ए, सही ए ॥१६ दुद्धर उपसर्ग ते करे, देव माया विकृति धरे । बहुविधि विक्रिया भय देखविए, सही ए ॥१७ च्यार पहर कीयो उपसर्ग, निश्चल जाणो कायोत्सर्ग । परिषह सहतां प्रभात हुआ ए, सही ए ॥१८ तब देव मन रीझियो, जिनशासन धर्मे भीजीयो । प्रगट थई श्रेष्ठी पाये नमें ए, सही ए ॥१९
अमितप्रभ कहु कहु अहो, आकाशगामिनी ल्यो तम्हो । विद्या बले अढ़ाई द्वीप जिन भेंटीए, सही ए ॥२०
विधि - सहित विद्या दीधी, वस्त्र आभरण देई भक्ति कीधी । साधर्मी परशंसी ते सुर गया ए, सही ए ॥२१ श्रेष्ठी निज घर आवीयो, विद्या लाभ हर्ष पामीयो । पूजा लेइ मेरु जिन जात्रा गयो ए, सही ए ॥२२ एक दिन श्रेष्ठी जात्रा जाई, सोमदत्त सेवक मन ध्याई । विद्या मांगे श्रेष्ठी पासे रूबडी ए, सही ए ॥ २३ हुआ बुझी में तम साथे, पूजा द्रव्य घरी निज हाथे । तुम प्रसादे स्वामी जात्रा करूँ ए, सही ए ॥ २४
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