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पदम-कृत श्रावकाचार
सात विसन ते सेवतो, करतो पाप अनन्त । कर्महणी मुकते गयो, अंजन समकितवन्त ॥३ इम जाणी निश्चय करी, जिनवर-वचन प्रमाण । सुरनर सुख ते अनुसरी, अनुक्रमे लहे निर्वाण ॥४
भास वोनतीनी उपराजी जिनधर्म, भोग वांछा नवी कीजिइ ए। संतोष धरी निजमंत्र, निःकांक्षित गुण लीजिइ ए॥१ कुणे पाल्यो एह अंग, जिनशासन माहे ऊजलो ए।
अनन्तमती सती नाम, तेह वृत्तान्त हवे सांभलो ए॥२ अंगदेश मझार, चंपा नयरी छै भली ए। श्रीवर्द्धन तस राय, लक्ष्मी मती राणी निर्मली ए॥३ प्रियदत्त श्रेष्ठी नाम, अंगवती नारी धणी ए। धर्म अर्थ साधि काम, देवागम गुरु भक्ति घणी ए ॥४
तस विहु कूखे जाणि, अनन्तमती पुत्री रूवड़ी ए। रूप सौभागनि खाणि, कनकतणी जे सीपड़ी ए॥५ एक वार वनहँ मझार, धर्मकीति गुरु आवीया ए। वन्दन चाल्यो श्रेष्ठि, निज परिवार सुहावीयो ए॥६ वन्दे सद्गुरु श्रेष्ठी, धर्मकथा रस सांभली ए। नन्दीश्वर दिन अष्ट, शोलवत लीधो वली ए।७ अवसर तेणें श्रेष्ठी, निज पुत्री प्रति भासीउ ए। बेटो लेउ तमें शील, विनोद व्रत अपादीयो ए ॥८ वंदी सद्-गुरु पाय, ते सहु आव्या निज मन्दिरे। यौवन पामी अनुक्रमें, सयल लक्षण देखी सुदरी ए॥९ विवाह तणी सुणि बात, तात प्रतें बेटी कहे ए।
तम्हो देवास्युं अम्हे व्रत, शीलवंती वर किम गुही ए॥१० वाप बोल्यो सुण बेटी, विनोद व्रत देवारीयो ए । अष्ट दिन पर्यन्त, इम कही लेवारीयो ए॥११
बलतु कहे ते पुत्री, धर्मकाज किस्युं हांसु ए। मुझ नियम सीमा न कीध, वली वली कहु किसुंए ॥१२ तब भाष्यो थयो साह, निश्चल मन बेटी तणुं ए।
अविचारी करे जे काज, पश्चात्ताप होइ घणुं ए॥१३ । पापी करावे पाप, धर्मी ने धर्मरुचि ए । हासे लेवा सुं नेम, पुण्यतणो हवे संचय ए॥१४ धन्य वन्य पुत्री मन्न, तात कहे रहो घरे ए। सखी सजन सहित, दान पूजा तप करे ए ॥१५
एक वार वनहिं मझार, चैत्रमासे क्रीडा करै ए। हर हिंडोले हीलंत, निज सखी स्युं परिवरी ए॥१६ तिण समय ते जाण, विजया दक्षिण श्रेणी ए। किन्नर नगर को ईस, कुंडल मंडित विद्या धणी ए॥१७ सुकेशी तस नार, विमान वेसी बिन्हे चालिया ए। शोभा जोइ भूपीठ, कन्या देखी मन हालिया ए १८ काम जाग्यो मन माहे, ए कन्या विण जीव, किस्युं ए। पाछो आव्यो मूको घर नारि, कन्या पासे बाव्यो धसी ए॥१९
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