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पदम-कृत श्रावकाचार
एणी परे त्रण मढ, विवेक गुणें करि व्यजो ए। प्रौढ होय समकित्त, हितकारो सदा भजो ए ॥१५ हवे सुणों अष्ट मद, मत्सर माने पाप उपजे ए । अहितकारी अति कष्ट, राग रोष ते नीपजे ए ॥१६ जाति मद कुल मद, लक्ष्मी ज्ञान रूप मद ए । तप बल विज्ञान मद, आठ मद पाप प्रमाद ए ॥१७
जाति तणों एह मद, पक्ष मोटो मुझ माय तणो ए।
मोटो कोधो तेणे काज तुनुस्तुंलिकसुं घणु ए॥१८ लक्ष चौरासी जीव, अनेक वार जीव ग्रही ए। जाति तणो संक्रम, परंपराते कुण लहे ए ॥१९ कुल तणो करे गर्व उत्तम काज वृद्धे कर्यु ए। वंश मोटे मुज तात, एम कही मद अनुसरे ए ॥२०
एक सौ साढ़े नवाणुं, लक्ष कोडि ते कुल कहीया ए । वली-वली ऊपजे जीव, तात संक्रम ते कुण लहि ए॥२१ लक्ष्मी तणो किसी गर्व, अल्परिद्धि रामी करी ए। छिण आवे छिण जाय, वक्ष छाया छिण जिम फिरे ए॥२२ अल्प भणी श्रुतज्ञान, मत्सर करे मूढमती ए।
ज्ञान लही केवल बोध, तो अज्ञानी कहे जती ए॥२३ पामी शरीर सरूप, देखी मद करे तेह तणो ए। जिन चक्री काम देव, ते आगले किसूं घणूं ए॥२४ पामी अंग सबल. कहे शक्ति मझ ने घणी ए, आगे हआ कोटी भद्र, ते सम बड़ कांइ भणं ए॥२५ अल्प करी उपवास, कठिण तप घणो कीयो ए। एक बेच्यारे षट् मास, ते आगल कांइ भणु ए २६ चित्र-मंडण लेख कर्म, सोखी मद स्युं तणुं ए। एक एक थी अधिक विज्ञान, तुं रीझे किसु घणुं ए॥२७
इणि परे आठे मद, जुजुआ जोउं जुगति करी ए।
समकित ने दीये दोष, मद छांडो मार्दव धरी ए ॥२८ जे-जे कृत्रिम वस्तु, कर्म संजोगे जे मिली ए। छिण-छिण विणसे तेह, सू मद कीजे जू तेटलू ॥२९
कर्मतणे वशि जीव, ऊँच नीच गोत्र ग्रही ए। हीन अधिक बुद्धि कुबुद्धि, शुभ अशुभ कर्म लहि ए ॥३० कुदेव कुगुरु तणां भक्त, कुलिंगी भक्त तेह तणा ए। कूशास्त्र कुशास्त्र तणा भक्त, अनायतन षट भेद भण्या ए॥३१ दूषण-सहित कुदेव, परिग्रह-सहित कुलिंगि कहीया ए।
कुत्सित आचार कुशास्त्र, पूजा भक्ति दूषण ग्रह्या ए॥३२ अष्ट शंकादिक दोष, भेद कहँ हवे तेह तणा ए। दोष टाले होइ गुणा, अष्ट भेद अंग सुण्या ए॥३३
जल-बिन्दु जीव असंख, निगोद देही अनंत रासी ए।
सूक्ष्म कह्या तत्त्व भेद, शंका दोष संशय भास ए ॥३४ दान पूजा तप ध्यान, अध्ययन धर्म करी ए । निंदा न करी वांछे भोग, आकांक्षा दूषण धरी ए॥३५
जती व्रती गुणवन्त, जल्ल-मल्ल अंग रोग देखी ए। सूग करे जे मूढ, विचिकित्सा दोष पेखीये ए॥३६ देव-अदेव गुरु-कुगुरु, तत्त्व अतत्त्व जे न वि लहि ए।
धर्म-अधर्म अविचार, मूढ दोष इणि परि वहि ए ॥३७ सागारी अणगार, चारित्र आचरण वसि ए। मलिण देखि त्रस व्रत, अन आछादन देइ दोष ए॥३८
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