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श्रावकाचार-संग्रह
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सत्य शास्त्र ते जाणी ए, जेह मां होइ दयाधर्मं । सत्य अचौर्यशील गुण, जिहां सदा शौचकर्म ॥१९ चार अनुयोग जहां निरूपिया, प्रथमानुयोग पवित्र । त्रेसठशलाका नरतणां, वास कीधा चरित्र ॥ २० त्रैलोक्यतणुं जिहां वर्णन, ते करणानुयोग । श्रावक यतिव्रत्त व्याख्यान, जाणो ते चरणानुयोग ||२१ षद्रव्य पंचास्तिकाय, तत्त्व अर्थ प्रकार द्रव्यानुयोग ते निर्मलो, श्री जिनवाणी उद्धार ॥२२ देवगुरु शास्त्र नव भेद, जोइडं सत्य सुजाण । पूर्वापहि जे विरुद्ध नहीं, तेहहिं शास्त्र प्रमाण ||२३ कुदेवतणुं लक्षण सुणुं, दीसे देह सिणगार । वस्त्र नारी करी लंकर्या, हाथे छे हथियार ॥२४ गदा शंख धरि चक्रपाणि हाथे छँ जपमाल । गरुडगामी मोर पोछ भार, भामा भोगवै विशाल ॥ २५ एक मूर्तिदीसे लजामणी, लिंग जोणी मझार । पुरुष नारी साथै सदा करे वृषभ विहार ॥ २६ भस्म अंगि कपाल हस्ति, कंठे छं रुंडमाल । करि त्रिशूल भुजंग कंठि, जटा नग्न विकराल ॥२७ भवर देव तणी विकृत, दीसे वदन ते चार । राग-रंग रमे सदा, हंस यान संचार ॥२८ तिलोत्तमा रागि रल्यु, दण्ड कमण्डलु पात्र । कोपीन जज्ञोपवीत कंठि, अक्षसूत्री कुमात्र ॥ २९ धड़ लेई एक नर तणो, थापी शिर एक हस्ति । तेल सिन्दूर रचना रची, एहवी कहे देवमूति ॥३० पदे पसू चापी रहे, करे क्रूर हथियार । रुधिर मांस बलराती सदा, आगल पशु सिधार ॥३१ जक्ष- जक्षी नाग-नागिणी, गुरु गोत्रज नाम । जलमी वराही इआदें करी, देवी भीषण भाम ||३२ धात पाषाण माटी काष्ट, देव-देवी तणां मंच । मूढ जीव तणां रजक, माने मिथ्याती संच ॥३३ ए आदे देव देवी तणी, दीसे बहुमूर्त्ति। जिन प्रतिमा यो बाहिरी, ते सहु मिथ्या विकृत्ति ॥ ३४ कुगुरु चिह्न हवे सांभलो, पंच पातक-सक्त । हिंसा असत्य चोरी आचरे, मैथुन अंग जे रक्त ॥३५ मठ मन्दिर वनवासी आ, रामा रागे ते राता । कृषण करे पशु-पालक, राग रोस मद माता ||३६ विणज वीवाहे वैद ज्योतिषी, विद्या मन्त्र कुतंत्र । कामण मोहण वसिकरण पाखंड करे कुजंत्र ||३७ चर्मरोम ओढ़े घणा, वनवण कुलकारी । पंचविध वस्त्र आदरे, नग्न कोपीन एक धारी ॥३८ विप्र संन्यासी कापडी, योगी दरवेश. दोहिल्या । बौद्ध सांख्य कुतापसी, बहुभिक्षुक बोल्या ॥ ३९ गोपिच्छक धवल अम्बरी, द्रावड़ आपली संग । पिच्छविहीना दुर्मती, जैनभाषा प्रसंग ॥४० जिनशासन जे बाहिरा जिनमार्ग विखण्ड । ते कुगुरु मिथ्यातीया, कुवेष लिंग सहित ॥४१ कुत्सित शास्त्र हवे सांभलो, जेमां कुत्सित आचार । धर्मकाज हिंसा करे, जज्ञ जीव सन्धार ॥४२ असत्य चोरी अब्रह्मचर्य, निशि भोजन पाणी । कन्दमूल मधुभक्षण, स्नान नीर अछाणी ||४३ श्राद्ध संवच्छरीने तर्पण, जागर मण्डल प्रश्न । पितरपिंड उतारणां अम्बर देवी कुकृष्ण ॥४४ वड पीपल शमड़ीवृक्ष काग सूकर स्थान । बापी सरोवर नदी अ कूप, पूज्य माने अज्ञान ॥४५ रवि अ शनिश्चर संक्रम, ग्रहण आदित चन्द्र । एकादशी आमास आदि, ओछी स्थापना क्षुद्र ॥४६ देवने तो दूषण दीये, परनारी अपवाद । स्वामी लीला एहवी करें, एह इन्द्री उनमाद ॥ ४७ शीलवन्ती सती कहुं, बली पंच भरतार । अष्टादश पुराणमाहे, स्थापे असत्य अपार ॥४८ एक सौ असी क्रिया भेद, चौरासी अक्रियावाद । अज्ञानी सड़सठे भेद, बत्तीस विनयविवाद ॥४९
से त्रेसठ एणि परे, कुवाद कुस्थान कुमन्त । संशय विमोह कारणें, ते कुशास्त्र असत्य ॥५० जे जिम जेणें किया थापर ते विपरीत । कुबुद्धि बले धूर्त कल्पित, दीखे अबली कुरीत ॥५१ जे जिनवाणी वेगला, थाप्या बहु विभचार ।
• विरुद्ध वचनें रचना रची, किम कह्यो जाय विस्तार ॥५२
सत्यदेव कुदेव तत्त्व, गुरु कुगुरुते सरिखा । शास्त्र कुशास्त्र सम लेखवे, न जाणे ते परिक्षा ॥५३
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