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बावकाचार-संग्रह तिनकों लखि द्विज शिर नायौ, सब पापकर्म विनशायो। पूछी जनमान्तर बातां, जा विधि पाई बहु घातां ॥२२ सो मुनिने सारी भाखी, कछु बात चीच नहिं राखी। निशिभोजन सम नहिं पापा, जाकरि पायो दुखतापा ॥२३ सुनि करि मुनिवरके बैना, ब्राह्मण धार्यो मत जैना। सम्यक्त अणुव्रत धारी, श्रावक हूवी अविकारी ।।२४
बोहा मात पिता अति हित कियो, दियो भूप अति मान । पुण्य उदय लक्षमी अतुल, पाप किये बहु हान ।।२५
चौपाई पूजा करे जपे अरहन्त, महीदत्त हवी अतिसन्त । जिनमन्दिर जिनबिम्ब रचाय, करी प्रतिष्ठा पुष्य उपाय ॥२६ सिद्धक्षेत्र वन्दै अधिकाय, जिनसिद्धांत सुनै अधिकाय। केतो काल गयो इह भांति, समय पाय धारी उपशांति ॥२७ शुभ भावनितें छांडे प्रान, पायो षोडश स्वर्ग विमान । ऋद्धि महा अणिमादिक लई, आयु बीस सागर भई ॥२८ चयो स्वर्ग थी सो परवीन, राजपुत्र हूवौ शुभ लीन । देश अवन्ती उत्तम बसे, नगर उजैणी अति ही लसे ॥२९ तहां नरपती पृथ्वीमल्ल, जिनधर्मी सम्यक्ति अचल्ल । प्रेमकारिणी रानी महा, ताके उदर जन्म सो लहा ॥३० नाम सुधारस ताको भयो, मात पिता अति आनन्द लयो । अनुक्रम वर्ष सातको जबे, विद्या पढ़ने सोप्यौ तबै ॥३१ । शस्त्र शस्त्रमें बहु परवीण, भयो अणुव्रती समकित लोन । जोवनवंत भयो सुकुमार, व्याह कियो नहिं धर्म सम्हार ॥३२ एक दिवस वनक्रीड़ा गयो, बड़तरु विजुरीतै क्षय भयो । ताको लखि उपनो वैराग, अनुप्रेक्षा चितई बड़भाग ।।३३ चन्द्रकोति मुनिके ढिग जाय, जिनदाक्षा लीनी शिर नाय । अभ्यन्तर बाहिर चौबीस, ग्रन्थ तजे मुनिकू नमि शीश ॥३४ पंच महाव्रत गुप्ति जु तीन, पंच समिति धारी परवीन । सुकल ध्यान करि कर्म विनाशि, केवल पायो अति सुखराशि ॥३५ बहुत भव्य उपदेशे जिनें, आयुकर्म पूरण करि तिनें। शेष अघातियको करि नाश, पायौ मोक्षपुरी सुखवास ॥३६ निशि भोजनतें जे दुख लये, वर त्यागेतें सुख अनुभये।। तिनके फलको वर्णन करी, कथा अणणमी पूरण करी ॥३७
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