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दौलतराम - कृत क्रियाकोष
तौ कंठविथा विस्तारे, इत्यादिक दोष निहारे । भोजन में आवे बाला, सुर भंग होय ततकाला ॥४ निशिभोजन करके जीवा, पाव दुख कष्ट सदीवा । हो अति ही जु विरूपा, मनुजा अति विकल कुरूपा ॥१५. अति रोगी आयुस थोरा, ह्वे भागहीन निरजोरा । आदर - रहिता सुख- रहिता, अति ऊंच-नीचता सहिता ||६ इक बात सुनो मन लाई, हथनापुर पुर है भाई । ताइक हूतौ विप्रा, मिथ्यामत धारक लिप्रा ॥७ रुद्रदत्त नाम है जाकी, हिंसामारग मत ताको । सोरात्रि - अहारी मूढ़ा, कुगुरुनिके मत आरूढ़ा ॥८ इक निशिकों भोंदू भाई, रोटीमें चींटी खाई ।
मैं मोडक खायो, उत्तम कुल तिहं विनशायौ ॥९ कालान्तर तजि निज प्राणा, सो घूघू भयो अयाणा । पुनि मरि करि गयौ जु नर्का, पायौ अति दुख सम्पर्का ॥१० नीसरि नरकतें कागा, वह भयौ पाप-पथ लागा । बहु नर्कजुके कष्टा, पायौ ताने जु सपष्टा ॥ ११ पुनि भयौ विडाल सु पापी, जीवनिकूं अति संतापी । सो गयौ नर्क मैं दुष्टा, हिंसा करिके वो पुष्टा ॥१२ तहां जु भयो वह गृद्धा, पुनि गयौ नर्क अघवृद्धा ।
जुनीसरि पापी, हूवो पसु पाप-प्रतापी ॥ १३ बहुरें जु गयौ शठ कुगती, घोर जु नर्के अति विमती । नीसरिकै तिरजंच हूवौ, बहु पाप करी पशु मूवी ॥१४ पुनि गयौ नर्क में कुमती, नारकतें अजगर अमती । अजगर बहुरी नर्का, पायौ अति दुख सम्पर्का ।।१५ नर्कजुतै भयो वघेरा, तहां किये पाप बहुतेरा । बहुरें नारकगति पाई, तहातै गोधा पशु जाई ॥१६ गोधा नर्क निवासा, नारकतें मच्छ विभासा । सो मच्छ नरक जायो, नारकमें बहु दुख पायो ॥१७ नारकतें नीसरि सोई, वहुरी द्विजकुलमें होई । लोमस प्रोहितको पुत्रा, सो धर्मकर्मके शत्रा ॥१८ जो महीदत्त है नामा, सातों विसनजुसों कामा । नजुतें लौ निकासा, मामाके गयौ निरासा ॥ १९ मामे हू राख्यो नाहीं, तब काशीके वनमाहीं । मुनिवर भेटे निरग्रन्था, जे देहि मुकतिको पन्था ॥२० ज्ञानी ध्यानी निजरत्ता, भव-भोग- शरीर-विरता । जानें जनमान्तर बातें, जिनके जियमें नहि घातें ॥२१
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