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________________ RD रोखतराम-कृत क्रियाको विन दान न सिद्धी ह अधवृद्धी, दुरगति दुख अनुसरना है। करपणता धारी शठमति भारी, तिनहिं न सुभ गति वरना है ।।१८ यामें नहिं संसा नृप श्रेयंसा, कियउ दान दुख हरना है। सो ऋषभ प्रता त्याग त्रितापे, पायो धाम अमरना है ।।१९ श्रीषेण सुराजा दान प्रभावा, गहि जिनशासन सरना है। लहि सुख बहु भांती ह जिन शांती, पायो वर्ण अवर्णा है ॥२० इक अकृतपुण्या कियउ सुपुण्या, लहिउ तुरत जिय मरना है। ह्व धन्यकुमारा चारित धारा, सरवारथ सिधि धरना है ।।२१ सूकर अर नाहर नकुल रु वानरु, नमि चारन मुनि चरना है। करि दान प्रशंसा लहि शुभ वंशा, हर जनम जर मरना है ॥२२ बोहा वनजंघ अर श्रीमती, दानतने परभाव। नर सुर सुख लहि उत्तमा, भये जगत की नाव ॥२३ वनजंघ आदीश्वरा, भए जगतके ईश। भये दानपति श्रीमती, कुल कर माहिं अघोश ॥२४ अन्नदान मुनिराजकों, देत हुते श्रीराम । करि अनुमोदन गीष इक, पंछी अति अभिराम ॥२५ भयो धर्मयी अणुव्रती, कियो रामको संग । राममुखै जिन नाम सुनि. लह्यो स्वर्ग अतिरंग ॥२६ अनुक्रम पहुंचेगी भया, राम सुरग वह जीव । धारैगो निजभाव सहु, तजिके भाव अजीव ॥२७ दानकारका अमित ही, सीझे भवथी भ्रात । बहुरि दान अनुमोदका, को लग नाम गिनात ॥२८ पात्रदान सम दान अर, करुणादान बखान । सकल दान है अन्तिमो, जिन आज्ञा वरवान ।।२९ आपथकी गुण अधिक जो, ताहि चतुरविधि दान । देवो है अति भक्ति करि, पात्रदान सो जान ॥३० जो पुनि सम गुन आपत, ताकों दैनों दान । सो समदान कहें बुधा, करिकै बहु सनमान ॥३१ दुखी देखि करुणा करे, देवे विविध प्रकार । सो है करुणादान शुभ, भाषे मुनिगणधार ॥३२ सकल त्यागि ऋषिव्रत धरै, अथवा अनशन लेइ। सो है सकल प्रदानवर, जाकरि भव उत्तरेइ ॥३३ दान अनेक प्रकारके, तिनमें मुखिया चार । भोजन औषधि शास्त्र अर, अभयदान यविकार ॥३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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