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________________ ३७५ दौलतराम-कृत क्रियाकोष जे अभ्यन्तर त्यागै संग, मूर्छा रहित लहैं निजरंग । ने परिग्रहत्यागी हैं राम, बांछा-रहित सदा सुखधाम ॥८४ ज्ञानी बिन भीतरको संग, और न त्यागि सकें दुख अंग। राग-द्वेष मिथ्यात विभाव, ए भीतरके संग कहाव ॥८५ तजि भीतरके बाहिर तजै, सो बुध नवमी पडिमा भजे । वस्त्र मात्र है परिग्रह जहाँ, धातुमात्रको लेश न तहां ॥८६ नर्म पूंजणी धारै धीर, षट कायनिको टार पीर । जल-भाजन राखे शुचि-काज, त्यागै धन धान्यादि समाज ||८७ काठ तथा माटीको जोय, और पात्र राखे नहिं कोय । जाय बुलायो जीमें जोय, श्रावकके घर भोजन होंय ।।८८ दशमी प्रतिमा-धर बड़भाग, लौकिक वचनथको नहिं राग । बिना जैनवानी कछु बोल, जो नहिं बोले चित्त अडोल ॥८९ जगत काज सब ही दुखरूप, पापमूल परपंच स्वरूप। तातें लौकिक वचन न कहै, जिनमारगकी सरधा गहै ॥९० मौन गहै जगसेती सोय, सो दशमी पडिमाधर होय । श्रुति अनुसार धर्मकी कथा, करै जिनेश्वर भाषी यथा ॥९१ जगतकाजको नहिं उपदेश, घ्यावे धीरज धारि जिनेश । बोलै अमृत वानी वीर, षट कायनिकी टारे पीर ॥९२ तजे शुभाशुभ जगके काम, भयो कामना-रहित अकाम । जे नर करे शुभाशुभ काज, ते नहिं लहैं देश जिनराज ॥९३ राग-द्वेष कलहके धाम, दीसे सकल जगतके काम । जगतरीतिमें जे नर बसा, सो नहिं पावै उत्तम दसा ९४ दशमी पडिमा धारक सन्त, ज्ञानी ध्यानी अति मतिवन्त । गिर्ने रतन-पाहन सम जेह, तृण-कंचन सम जाने तेह ॥९५ शत्रु-मित्र सम राजा-रंक, तुल्य गिर्ने मनमें नहिं संक । बांधव-पुत्र कुटुम्ब धनादि, तिनकू भूलि गये गनि वादि ॥९६ जाने सकल जीव समरूप, गई विषमता भागि विरूप । पर घर भोजन करें सुजान, श्रावककुल जो किरियावान ॥९७ अल्प अहार तहां ले धोर, नहिं चिन्ता धारें वर वोर। कोमल पीछी कमंडल एक, बिना धातुको परम विवेक ॥९८ इक कोपिन कणगती लया, छह हस्ता इक वस्त्र हु भया। इक तह एक पाटको जोय, यही राति दशमीकी होय ॥९९ जिन शासनको है अभ्यास, आगम अध्यातम अध्यास । अब सुनि एकादशमी धार, सबमें उतकृष्ट निरधार ॥१०० वनवासी निरदोष अहार, कृत कारित अनुमोदन कार । मन वच काय शुद्ध अविकार, सो एकादश पडिमा धार ॥१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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