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श्रावकाचार-संग्रह चौपाई
प्रथम हि दरशन प्रतिमा सुणों, आतमरूप अनूप जु मुणों । दरशन मोक्ष- बीज हैं सही, दरशन करि शिव परसन लही ।। ३१ दरशन सहित मूलगुण घरे, सात व्यसन मन बच तन हरे । बिन अरहंत देव नहि कोय, गुरु निरग्रन्थ बिना नहि होय || ३२ जीवदया बिन और न धर्म, इह निहचै करि टारे भर्म । संजम बिन तप होय न कदा, इह प्रतीति धारे बुध सदा ||३३ पहली प्रतिमाको सो धनी, दरशनवन्त कुमति सब हनी । आठ मूल गुण व्यसन जु सात, भाषे प्रथम कथन में भ्रात ॥ ३४ ता कथन किया अब नाहि, श्रावक बहु आरम्भ तजाहि । है स्वारथ में सांची सदा, कूट कपट धारे नहिं कदा ||३५
धरे शुद्ध व्यवहार सुधीर, परपीड़ाहर है जगवीर । सम्यक् दरशन दृड़ करि धरै पापकर्मकी परणति हरै ||३६ क्रय विक्रयमैं कसर न कोय, लेन देनमैं कपट न होय । कियौ करार न लोपे जोहि, सा पहिली पड़िमा गुण होहि ||३७ जाके उर कालिम नहि रंच, जाके घटमैं नाहिं प्रपंच | जिनपूजा जप तप व्रत दान, धर्मध्यान धारे हि सुजान ॥ ३८ गुण इकतीस प्रथम जे कहे, ते पहली पड़िमामें लहै । अब सुन दूजी पड़िमाधार, द्वादश व्रत पाले अविकार ||३९ पंच अणुव्रत गुणव्रत तीन, शिक्षाव्रत धारै परवीन । निरतीचार महामतिवान, जिनको पहली कियौ बखान ॥४० अब तीजी पड़िमा सुनि संत, सामायिक धारी गुणवन्त । मुनिसमसामायिककी वार, थिरताभाव अतुल्य अपार ॥४१ करि तनको मनतें परित्याग, भव भोगिनत होइ विराग । धरि कायोत्सर्ग वर वीर, अथवा पदमासन धरि धीर ॥४२
टट घटिका तीनूं काल, ध्यावै केवलरूप विशाल । सब जीवनिसूं समता भाव, पंच परम पद सेवे पांव ॥४३
सो सब वर्णन पहली कियौ, बारा वरत कथनमें लियो । चौथी प्रतिमा पोसह जानि, पोसह मैं थिरता परवानि ॥४४ सो पोसहको सर्व सरूप, आगे गायौ अब न प्ररूप । पोसा समये साधु समान होवें चौथी प्रतिमावान ॥४५ दूजी पड़िमा धारक जेहि, सामायिक पोसह विधि तेहि । धारै परि इनकी सम नाहि, नहि ऐसी थिरता तिन मांहि ||४६ तीजी सामायिक निरदोष, चौथी पड़िमा पौसह पोष । पंचम पड़िमा घरि बड़भाग, करे सचित्त वस्तुनिको त्याग ॥४७
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