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दौलतराम-कृत क्रियाकोष रथ वाहन सुखपाल इत्यादि, हस्ती ऊंट रु घोटक आदि । एहें थलके वाहन सबै, पुनि बिमान आदिक नभ फबै ॥२० नाव जिहाज आदि जलकेह, इनमें ममता नाहिं धरेह । कोइक जावो जावै तजै, कोइक राखे नियमा भर्जे ॥२१ तिनहूँमें निति नेम करंइ, बहु अभिलाषा छांडि जु देइ । मुनि एवौ चाहे मन मांहि, जगमाहीं जाको चित नाहिं ।।२२ वाहन चढ़े होइ नहिं दया, तात तर्जे धन्य ते भया। मुनि आर्या अर श्रावक बड़े, हैं जु निरारंभी अति छड़े ॥२३ ते बाहनको नाम न धरै, जीवदया मारग अनुसरें। आरम्भी श्रावक राजादि, तिनके बाहन है जु अनादि ।।२४ तेऊ करै प्रमाण सुवीर, नित्यनेम धारै जगधीर । तीर्थकर चक्रो अरु काम, मुनि है फिर पयाद राम ॥२५ ताते पगां चालिवो भला, पर सिर चलिवो है अघमिला। इहै भावना भावत रहै, सो वेगा शिवकारन लहै ॥२६ रतनत्रय शिवकारण कहे, दरसन ज्ञान चरण जिन लहे । अब सुनि शयनासनको नेम, धारै श्रावक ब्रतसों प्रेम ॥२७ जोहि पलंगपरि सोवो तनों, सोहू शयन परिग्रह गनों। सौड़ दुलाई तकिया आदि, ए सब सज्जा माहिं अनादि ॥२८ इनको नेम धरै व्रतवान, भूमि-शयन चाहै मतिवान । भूमि-शयन जोगीश्वर करें, उत्तम श्रावक हू अनुसरै ॥२९ आरंभी गहपतिके सेज, तेह नियम सहित अधिकेज । जापरि परनारी सोवेहि, सो सज्ज्या बध नहिं जोवेहि ॥३० निज सज्जा राखी है भया, ताहम पमित आत लया। व्रतके दिन भू-सन्जा करै, भोग भावतें प्रेम न धरै ॥३१ गादी गाऊ तकिया आदि, चौकी चौका पाट इत्यादि। सिंहासन प्रमुखा जेतक. आसन माहिं गिनी ज अनेक ॥३२ गिलम गलीचा सतरंजादि, जाजम चादर बादि अनादि । इन चीजोंसे मोह निवार, जासें होय पार संसार ॥३३ जेतो जाति बिछौनाको हि, सो सब आसन माहिं गनीहि । निज धरके अथवा परठाम, जेते मुकते राखे धाम ||३४ तिनपरि बैसे और जु त्याग, है जाको बतसूअनुराग । सचित वस्तुको भोजन निंद. जाहि निषेधे त्रिभुवनचंद ॥३५ मुनि आर्या त्यागेंहि सचित्त, उत्तम श्रावक लें हि अचित । पंचम पड़िमा आदि सुधीर, एकादस पडिमा लों वीर ॥३६ कबहु न लेइ सचित्त अहार, गहै अचित्त वस्तु अबिकार । पहलो पडिमा आदि चतुर्थ, पडिमा लोले सचितहि अर्थ ॥३७
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