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________________ श्रावकाचार-संग्रह गोत नृत्य वादित्र जु सर्व, उपजावै अति मनमथ गर्व । ए कौतूहल अधिके बन्ध, इनमें जो राचे सो अन्ध ।।२ जो न सर्वथा छाड़े जाय, तोहु न अधिक न राग धराय । मरजादा माफिक ही भजे, औसर पाय सकल ही तजे ॥३ एक भेद या माहीं, और, आपुन बैठौ अपनी ठौर । गावत गीतत्रिया नीकली, सुनिकर हर चितधरि रलो ।।४ तामें दोष लगै अधिकाय, भाव सराग महा दुखदाय । पातरि नृत्य अखारे माहि, नट नटवा अथ नृत्य कराहिं ।।५ बादीगर आदिक बहु ख्याल, बिनु परमाण न देखौ लाल । अब सुनि ब्रह्मचर्यकी बात, याहि जु पाले तेहि उदात ॥६ परनारोको है परिहार, निजनारी में इह निरधार । जावो जीव दिवसको त्याग, रात्रि विष हूँ अलपहि राग ॥७ पाँच परवी शील गहेय, अर सब व्रतके दिवस धरेय । कबहक मैथुन सेवन परै सो मरजादा माफिक करै ।।८ महा दोषको मूल कुशील, या तजिवेमें ना करि ढील । सेबत मनमथ जीव-विघात, इहै काम है अति उतपात ॥९ जा न सर्वथा त्याग्यो जाहि. तौहू अलप सेववौ ताहि । नदी तलाव बापिका कूप, तहाँ जाय न्हावौ जु विरूप ॥१० जो न्हावै बिनछाणे जले. ते सब धर्म-कर्मत टलैं।। जसौ रुधिरथकी है स्नान, तैसो अनगाले जल जान ॥११ अचित जले न्हावी है भया, प्रासुक निर्मल विधिकरि लया। ताहूकी मरजादा धरै, बिना नेम कारिज नहिं करै ॥१२ रात्री न्हावी नाहिं कदापि, जीव न सूझै मित्र कदापि । हिंसा सम नहि पाप जु और दया सकल धर्मनि सिर मौर ॥१३ आभूषण पहिरे हैं जिते, घरमैं और घरे हैं तिते । नियम बिना नहि भषण धरै, सकल वस्तुको नियम जु करै ॥१४ परके दीये पहरे जे हि, नियम माहि राखै हैं तेहि । रतनत्रय भूषण बिनु आन, पाहन सम जाने मतिवान ॥१५ वस्त्रनिकी जेती मरजाद, ता माफिक पहरै अविवाद । अथवा नये ऊजरे और, नियमरूप पहरै सुभतौर ॥१६ सुसरादिकके दीने भया, अथवा मित्रादिकतें लया। राजादिकने की बकसीस, अदभुत अंबर मोल गरीस ॥१७ नित्य नेममें राखे होइ, तो पहिरे नातर नहि कोइ । पावनिकी पनही है जेहि, तक वस्त्रान माहिं गिनेहि ॥१८ नई पुरानी निज परतणी, राखै सो पहिरै इम भणी। पनही तजे पहरवी भया, तो उपजे प्राणिनिकी दया ।।१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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