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दौलतराम-कृत क्रियाकोष देसावकाशि व्रत माहीं, सतरा नेम जु सक नाहीं। तिनको सुनि रीति जु मित्रा, जिन करि ह्र व्रत पवित्रा ॥८९
दोहा
नियम किये व्रत शोभ ही, नियम बिना नहिं शोभ । तातें व्रत धरि नेमको, धारै तजि मद लोभ ।।९.०
सतरा नेमके नाम उक्तं च श्रावकाचारे भोजने घटग्से पाने. कुंकुमादिविलेपने । पुष्पताम्बूलगीतेषु, नृत्यादौ ब्रह्मचर्यके ।।? स्नानभूषण वस्त्रादौ, वाहने शयनाशने । सचित्तवस्तुसंख्यादौ, प्रमाणं भज प्रत्यहम् ।।२
चौपाई भोजनको मरजादा गहै, वारंवार न भोजन लहै । पर घर भोजन तोहि जु कर, प्रात समै जो संम्बा धरै ।।९१ अन्न मिठाई मेवा आदि, भोजन माहिं गिने जु अनादि । बहरि चवीणी अर पकवान. भोजन जाति कहे भगवान ॥९२ सब मरजादा माफिक गहै, बार-बार ना लीयौ चहै। षट रसमें राखे जो रसा, सोई लेय नेममें बसा ।।९३ और न रस चाखौ बुधिवन्त, इह आज्ञा भाषे भगवन्त । काम-उदीपक हैं रसजाति, रस परित्याग महातप भांति ॥९४ जो रसजाति तजी नहिं जाय, करि प्रमाण जियमें ठहराय। पानी सरबत दूध रु मही, इत्यादिक पीवेके सही ।।९५ तिनमें लेवौ राखै जोहि, ता मापिक लेवौ बुघ सोहि । चोवा चन्दन तेल फुलेल, कुंकुम और अरगजा मेल ॥९६ औषधि आदि लेप हैं जेह, संख्या बिन न लगावै तेह । जाने येह देह दुरगन्ध, याके कहा लगावै सुगन्ध ।।९७ जो न सर्वथा त्यागै वीर, तोहु प्रमाण ग्रहै नर धीर । पहपजातिसो छांडै प्रेम, अति दोषीक कहे गुरु एम ॥९८ भोग उदय जो त्यागि न सके, थोरे लेप पापा सके। पान सुपारी डोड़ा आदि, लोंगादिक मुखसोध अनादि ।।९९ दालचिनी जावित्री जानि, जातीफल इत्यादि बखानि । सबमें पान महा दोषीक, जैसे पापनि माहिं अलोक ॥१२०० पान त्यागिवी जावो जीव, पाननिमें प्राणी जु अतीव । जो अतिभोगी छांडि न सके, थोरे खाय दोषतें सकै ॥१
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