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________________ पदम-कृत श्रावकाचार छणं अथाणा आदरि ए, रसाईया जीव तणु भक्ष तो। अंतराय पाले नहिं ए, अन्न वासी लेई रक्ष तो ॥८८ ए आदि बहु दूषण ए, आगम तत्त्व विरुद्ध तो । थापना करि अछेरा कही ए, संशय ज्ञान अमुद्ध तो ॥८९ प्रथम चौरासी गच्छ कही या ए, बहु हुआ अधिकने टोल तो। आप आपणी बुद्धि कल्पिए ए, जुजूआ माने बोल तो ॥९० कृहित दृष्टान्त देई करी ए, थापे संशय कुमत्त तो। मूढजीव माने घणा ए, न वि लहे सत्य-असत्य तो ॥९१ इणी परि श्वेतपट मत करी ए, जिनचन्द्र पामी मरण तो। प्रथम नरकि ते ऊपज्यो ए, दुःख सहे नहिं कोई सरण तो ॥९२ माया मार्ने मूढनी ए देई ए,धूर्त बाहि पर आप तो। ते पापी संसार मां ए, वि भवि सहे संताप तो ॥९३ पारसनाथ तणो गणधर ए, तेह तणो शिष्य अज्ञान तो। मशक पूरणं नामे मुनी ए, वश थई मिथ्या मान तो ।।९४ श्री वर्धमान तीर्थ समै ए. अवगणना पामी दष्ट तो। जिनशासन गुण परिहरी ए, हुओ आचारतें भ्रष्ट तो ॥९० पश्चिम दिश जइने रह्यो ए, खोटा शास्त्र तेणे क्षुद्र तो। अज्ञानी लोक वश कीया ए, बोली जिनशासन छाइ तो ॥९६ अज्ञान पणे मुक्ति कह्यो ए, मुक्ति जीव नहि ज्ञान तो। गमनागमन नहि वली ए, अवर कहे बह भ्रांति तो॥९७ हजह जीरा थापीया ए, माने शून्य आकार तो। हिंसा कर्म ते बहु करि ए, पसुतणां संधार तो ॥९८ जे जे जिनतत्त्व हुता ए, ते माने विपरीत तो। अणाचार अति आदरयो ए, अवली देखा डेरीत तो ॥९९ जिन शासन सूरोस करि ए, सूरज देखी जिम घूक तो। चैत्यालय भंजन करे ए, रंजक अग्यानी लोक तो ॥१०० अग्यान मिथ्यात नरक हुआ ए, जाणें नहीं कृत्य अकृत्य तो। निगोद माहे ते दुख सहे ए, पापी पामी ते मृत्यु तो ॥१०१ जे अज्ञान पणु आचरि ए, तेहनों होइ बहु पाप तो। जनमि जनमि ते जे जीवडा ए, सहि संसार संताप तो ॥१०२ दोहा मूल मिथ्यात्व ते एक कह्यो, उत्तर भेद ते पांच । अवर असंख्य लोक भेद, किम कही जाय ते वाच ॥१०३ मिथ्यात्व घणु स्यूं वर्णवु, माहे दीसे नहीं कांई सार। धूल कपर जिम लीपणों, जाता न लागे वार ॥१०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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