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श्रावकाचार-संग्रह
पंच मिथ्यात्व सदा सहि, भावरूपें बहु होइ । ते हुण्डावसर्पिणी मांहे, द्रव्य रूपइ लिंग जोइ ॥ १०५ षट्दर्शन छन्नु पाखण्ड, जैनाभास वली पंच । संशय विभ्रम उपजावीनें, मूढ़ करें परपंच ॥१०६ शुद्ध दर्शन श्री जिनतणों, द्रव्य भावें अनादि । अवर डम्भक दीसे घणां, ते सघला उपाधि ॥१०७ जिन शासन थी बाहिरा भिन्न भिन्न दीसे जेह ।
पंचम काले पाखण्ड घणां, मिथ्या जाणो सहुं तेह ॥ १०८ मिथ्यात्व समो शत्रु नहीं, नारक गति दातार ।
अनन्तकाल दुखदायक, भमे भवोदधि मंझार ॥१०९
मिथ्याती संगथी भलो, वाघ सिंघ विसवास । जल अग्नि भृगुपात भलो, मिथ्यातें दुखरास ॥११०
मिथ्यात्व समो कोइ पाप नहीं, भारे वज्रसमान । आगे हुउ होसे नहीं, लोकमांहे नहिं वर्तमान ॥ १११ इम जाणि निश्चै करी, जो जिन तत्त्व विचार ।
जीव-हित होइ ते आचरो, घणु स्युं कहुं बार-बार ॥११२
ढाल मालंतडानी
सम्यक्त्व मेद हवे कहु ए, सुणे सुन्दरे, संक्षेपे विचार । मालंतडारे संक्षेपे सविचार | गुरु उपदेशे पामीउ ए, सुणे सुन्दरे, श्रावक धूरि अधिकार । मा० ॥ १ मूल भेद एक ककयो ए, सुणे सुन्दरे, अथवा द्विविध जाण । मा
त्रिहु भेदे जे निरमलो ए, सुणे सुन्दरे, इम कही जिन वाण | मा० ॥२ समकित विना ए आतमा ए, सुणे सुन्दरे, लक्ष चौरासी जोनि माँहि । मा० द्रव्य क्षेत्र काल भाव ए, सुणे सुन्दरे, पंचविध दुखते चाहि । मा० ॥ ३ आसन्न भव्य पंचेन्द्री पणु ं ए, सुणे सुन्दरे, गर्भ संज्ञी जेह । मा० चतुर्गतिक पर्यायनो ए, सुणे सुन्दरें, कठिण कर्म तणी छेह | मा० ॥४ पंच सामग्री दुर्लभ ए, सुणे सुन्दरे, भव-सायर जे नाव | मा० अनन्त भव दुख छेदक ए, सुणे सुन्दरे, भेदक कर्म कुग्राव । मा० ॥ ५ क्षय उपशम पहिली लब्धि ए, सुणे सुन्दरे, मन विशुद्धि बीजी होय । मा० देशन, प्रायोग्यता लब्धि ए, सुणे सुन्दरे, करण लब्धि पंचम जोय । मा० ॥६ च्यारि बधि सह जीव लहि ए, सुणे सुन्दरे, करण लब्धि भव्य जाणि । मा० अधः करण अपूरव करण ए, सुण सुन्दरे, अनिवृत्ति करण मनि आणि । मा० ॥७ काल लब्धि आवा जब ए, सुणे सुन्दरें, तब ते करे त्रण करण । मा० समकित रत्न सुधू ग्रहि ए, सुणे सुन्दरे, संसार मांहि जे सरण । मा० ॥८ तत्त्वतणी रुचि जब करिए, सुणे सुन्दरे, तब ते लहे समकित । मा० तत्त्व-भेद वे कहुए, सुणे सुन्दरे, जिण होइ निज-पर-हित | मा० ॥९ जीव अजीव आस्रव बंध ए, सुणे सुन्दरे, सँवर निर्जरा मोक्ष । मा० चेतन अचेतन भेद ए, सुणे सुन्दरे, सप्त तत्त्व कहि दक्ष | मा० ॥१० पुण्य पाप दुहु मलीए, सुणे सुन्दरे, नव ए पदारथ जाण । मा० द्रव्य उत्पत्ति व्ययात्मक ए, सुणे सुदरे, द्रव्य गुण पर्याय बखाण । मा० ॥ ११
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